________________
आदर्श-ज्ञान
११८
पढ़ने का लाभ मिला, वैसे ही श्रावकों को थोकड़े सीखने का भी कम लाभ नहीं मिला। कोई २० अच्छी बुद्धिवाले श्रावक थोकड़ों का अभ्यास करते थे, उन सब को आपने करीब ३०० थोकड़े सिखाये ।
स्वामी शोभालालजी में जैसा ज्ञान गुण था वैसे ही वात्सल्यता का भी जबरदस्त गुण था । कोई भी पुस्तक अथवा उपकरण का लाभ होता तो वह हिस्सा प्रमाणे सबको देकर ही लेते थे, यह गुण अन्य साधुओं में प्रायः कम पाया जाता है । कहा भी है कि "असंविभागी नवि तस्समोक्खो" ।
बीकानेर में एक ताराचन्दजी हनुमानगढ़ वाले श्रावक रहते और वे स्थानकवासी कहलाते थे । पर उनकी श्रद्धा तेरह पन्थियों की थी । विरधीचन्दजी बांठिया वगैरह ५-७ श्रावकों को उन्होंने अपने अनुयायी बना लिए थे। हमारे चरित्रनायकजी का भी उनसे परिचय हुआ । उन्होंने स्वामी जीतमलजी का बनाया हुआ भ्रमविध्वंस नामक ग्रन्थ लाकर दिया | आपने पढ़ा तो कई बातों पर आपको शंका हुई; किन्तु जब सूत्र निकाल कर पूर्वापर सम्बन्ध को देखा तो तेरह पन्थियों का मत जैन शास्त्रों से बिलकुल विपरीत ही पाया ऐसी हालत में उन अर्धदग्ध श्रावकों को भी अपने सूत्रों के पाठ बतला कर तथा समझा कर उन पतित होते हुए भव्यों का उद्धार किया । इतना ही नहीं पर आपको भी तेरह पन्थी मत के विषय में अच्छी जानकारी हो गई, तथा उनकी कुयुक्तियों का समाधान करने के लिए आपने अनेक प्रकार की युक्तियाँ स्वयं तैयार कर लीं, जो कि शास्त्रानुकूल थीं ।
बीकानेर का चतुर्मास समाप्त कर आप क्रमशः विहारकर