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आदर्श-ज्ञान
१०० सेठजी०-हाँ प्रशंसा करने लायक है। पुज्यजी०-वहाँ क्या विशेषता है ?
सेठजी०-एक तो वहाँ अनेकों मुनिवरों ने मोक्ष प्राप्त की जिसके परिमाणु वहाँ जाने वाले के चित को निमल एंव पवित्र बना देते हैं दूसरा वहाँ की मूर्ति का इतना अतिशय प्रभाव है कि दर्शन करने वाले का दिल वहाँ से हटता ही नहीं है । इतना ही क्यों हम सुबह पांच बजे जाते थे और चार बजे वापिस श्राते थे वहाँ भूख प्यास तो क्या पर टट्टी पेशाब तक के लिए जाने की भी शंका नहीं होती थी।
पूज्यजी०-और क्या विशेषता है ?
सेठजी-जैनियों की भूतकालीन जाहुजलाली का आदर्श नमूना है । पूज्य महाराज ! दो पहाड़ियों के बीच की एक खाड़ भरवाई, जिस में नौ लाख रुपयों के तो केवल रस्से ही लगे बताते हैं । पूज्यजी महाराज, दूसरे २ धर्म के देवों की आकृति के लिए जैनियों का त्याग, वैराग्य, शान्ति श्रादि गुण बतलाने के लिए जैन मूर्ति एक आदर्श है। भवितव्यता ही ऐसी थी कि उधर मूर्तिपूजक समाज ने मन्दिरों में आडम्बर बढ़ा दिया और इधर लौंकाजी ने मूर्ति का खण्डन कर दिया, अत: मतभेद खड़ा होगया। बाकी मेरे ख्याल से मूर्ति का दर्शन करना कोई हानि का कारण नहीं है। वास्तव में देखा जाय, तो जैन-मूर्ति नहीं मानने से ही हमारे घरों में अनेक देवी देवताओं की मान्यता घुस गई है, जो कि मिथ्यात्व का मूल कारण है।
पूज्यजी-सेठजी जैन-मूर्ति देखकर मुझेभी बहुतराग होता है । सेठजी-आपने तीर्थंकरोंका समवसरण नजदीकही छोड़ा होगा।