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आदर्श-ज्ञान
११२ अर्सा यहां ठहर कर हम लोगों को सूत्रों की वाचना दें, तो बड़ी कृपा होगी, यदि आपको पूज्यजी के पास ही जाना है, तो पूज्य जी का चतुर्मास ब्यावर या अजमेर होगा, जो यहां से बहुत नजदीक है। बस, उनके लिहाज के वश हो कर आप कालु ठहर गये और उनके साधु साध्वियों को सूत्रों की वाचना देनी शुरू की । ज्ञातासूत्र, जीवाभिगमसूत्र, राजप्रश्नीसूत्र, उववाईसूत्र वगैरह की वाचना दी। रात्रि में साधु तथा श्रावक थोकड़ा, बोलचाल भी सीखते और धर्मचर्चा भी होती थी जिसका वे लोग आज भी उपकार मान रहे हैं। यही कारण है कि कालु के श्रावकों ने आपके ज्ञान पर मुग्ध होकर चतुर्मास के लिये आग्रह पूर्वक विनती कर आपको वहां ही रखने का निश्चय कर लिया। आपने उस समय परोपकार की धुन में यह विचार नहीं किया कि मैं इतनी बड़ी समुदाय को छोड़ कर अकेला चतुर्मास क्यों करता हूँ, परन्तु श्रावकों की भक्ति के वश चतुर्मास की स्वीकृति देदी ।
केवलचन्दजी स्वामी का चातुर्मास जैतारण होना निश्चत हो गया। कुछ सूत्र की वाचना अधूरी थी, अतः वे आपको
आग्रह करके जैतारण ले गये। वहां उन सूत्रों को समाप्त कर पुनः कालु आ गये। इधर मुनि श्री की विनती हो जाने के बाद देशी साधु केसरीमलजी. उदयचन्दजी कालु आये। कालु में सब लोगों के प्रायः गुरु आम्नाय उन साधुओं की हो थी,किन्तु उनके आचार में शिथिलता होने के कारण लोगों की भक्तिभावना प्रदेशी साधुओं पर विशेष थी; फिर भी केसरीमलजी ने सोचा कि हमारे क्षेत्र में प्रदेशियों का चतुर्मास होगा तो अवशेष क्षेत्र भी हाथ से चला जायगा । इसलिये उन्होंने कई