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आदर्श-ज्ञान
१०४ पूज्यजी महाराज के पैरों में पहिले से ही तकलीफ थी, किन्तु उस विहार में वेदना और बढ़ गई, उस समय आपकी सेवा में हमारे चरित्र नायकजी और दो वृद्ध साधु ही थे । वेदना यहां तक बढ़ गई कि पूज्य महाराज से एक कदम भी नहीं चला गया, वहां उस जंगल में और कुछ भी साधन नहीं था, अतएव हमारे चरित्रनायकजी अपनी जवानी और पूज्यजी महाराज की भक्ति की धुन में पूज्यजी महाराज को ईगीयार नामक ग्राम जो वहाँ से एक मील था अतः सिर पर उठा कर ग्राम में ले आये तथा १० दिन तक उस छोटे से ग्राम में रह कर खूब हो सेवा की, जिसको पज्यजी महाराज सदैव याद करते थे।
ईगीयार ग्राम से कुचेरे आये, उस समय हमारे चरित्र. नायकजी का एकान्तर तप चल रहा था। कुचेरा में चरित्रनायकजी की आखों में अत्यन्त वेदना हुई। करीब १ मास तक तकलीफ उठानी पड़ी, परन्तु उस वेदना में भी आपकी एकान्तर तपस्या वराबर चलती ही रही। पूज्यजी महाराज के कहने पर
आपने अष्टमतप चौविहार किया जिससे नेत्रों को कुछ आराम रहा।
जब आप कुचारे में थे तब देशी साधु जोरावरमलजी वहां आये । हमारे चरित्रनायकजी आप से पहिले से ही परिचित थे और जोरावरमलजी थे भी अच्छे मिलनसार साधु । स्वामीजी ने उनका शुभागमन करके थोड़ी देर बातें की। इस पर एक साधु ने पूज्यजी से जाकर कहा कि गयवरचन्दजी ने देशी साधु जोरावरमलजी को पधारने को कह दिया जो वे पासत्थे हैं। पूज्यजी ने एक उपवास का दण्ड दे दिया। इस पर आपने विचार