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सोजत - चतुर्मास और आज्ञा-पत्र को प्राप्ति
शुरु
ये तो यहां केवलचन्दजी साधु मिले जो हमारे चरित्र नायकजों ने में इनके पास ही दीक्षा लेने का विचार किया था । उन्होंने कहा कहो गयबर, क्या हाल है ?
गयवर ०. - हाल तो अच्छा ही है ।
केवल०—फिर अभी तक अकेला क्यों घूमता है ?
का ही फल है ।
गयवर ०. -आप महात्माओं की कृपा केवल ० – तुम्हारी दीक्षा तो होगई है न ? गयवर ०- - जी हाँ ।
केवल ० – किसके पास और किसका शिष्य हुआ है ?
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गयवर० - मेंने स्वयं ही दीक्षा ली है ।
केवल ० – स्वयं दीक्षा तो तीर्थङ्कर या प्रतिबुद्धि लेते हैं, तो क्या तूं भी प्रतिबुद्ध है ?
गयवर० – क्यों ? हमारे पूज्यजी तथा शोभालालजी ने भी स्वयं दीक्षा ली है ।
केवल ० – कहीं सूत्र में ऐसा उल्लेख है कि बिना गुरु दीक्षा
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हो सके ?
गयवर० – सूत्र में तो मैं क्या समझता हूँ, मुझे तो जैसा पूज्यजी महाराज ने कहा वैसा मैंने किया है ?
केवल० -- जब पूज्यजी की आज्ञानुसार किया तो फिर अकेला क्यों फिरता ?
गयवर० - पूज्य जी का कहना है कि अपने कुटुम्बियों की आज्ञा लाने पर तुम्हारा आहार जल शामिल किया जावेगा । केवल ०- क्या दीक्षा लेने के बाद भी कुटुम्ब रह सकता है । गयवर० – महाराज जब मैं गृहस्थ था, तब आप लोगों की