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आदर्श - ज्ञान
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रहूँगा, इत्यादि । इस पत्र का जवाब पूज्यजी महाराज को पूछ कर फौरन लिखो वरना मुझे स्वेच्छ मार्ग स्वीकार करना पड़ेगा । पत्र पहुँचते ही पूज्यजी महाराज को भंडारीजी ने पत्र पढ़ाया और कहा कि इसका क्या उत्तर लिखना । किन्तु पूज्यजी महाराज ने कह दिया कि ऐसे पत्र का जवाब नहीं देना चाहिये । उसको गरज होगी तो आप आजावेगा । इधर गयवरचंदजी के पास दूसरे दिन भी पत्र का जबाब नहीं श्राया तो उन्होंने अनुमान किया कि अभी पूज्यजी कि शुभ दृष्टि नहीं है । आप सुबह ही जालिया से बिहार कर एक ही दिन में ३८ मील चल कर अजमेर जाकर रात्रि को वहीं ठहरे और दूसरे दिन वहाँ से किशनगढ़ की ओर बिहार किया । मार्ग में एक ग्राम में मन्नालालजी महाराज मिल गये । आप उनके साथ जयपुर चले गये, मन्नालालजी ने आपको अपना शिष्य बनाने की कोशिश तो बहुत की, किन्तु आपका दिल पूज्यजी महाराज से हट नहीं सका और न पूज्यजी की योग्यता एवं श्रतिशयता मन्नालालजी में पाई, फिर भी उस आपत्तिकाल में आप मन्नालालजी के पास ही जयपुर में ठहर गये ।