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१८-चार साधुओं को ताकीद से जयपुर भेजे
पूज्यजी महाराज को जब यह पता लगा कि गयवरचंदजी मन्नालालजी के पास जयपुर जारहे हैं, तो बड़ा ही अफसोस हुआ कि एक अच्छे होनहार साधु को दुश्मन के हाथ देकर मैंने बड़ी भारी गल्ती की उन्होंने पश्चात्ताप किया, और उसी समय आज्ञा दी कि किस्तूरचंदजी अभी चार साधुओं के साथ विहार कर ताकीद से जयपुर जावें और गयवरचंदजी को मन्नालालजी के साथ पंजाब जाने से रोकें । बस, आज्ञा होते ही किस्तूरचंदजी ४ साधुओं से बिहार कर बड़ी फुर्ती के साथ जयपुर पहुँचे, और जिस मकान में मन्नालालजी ठहरे थे उसी मकान में ठहर गये । रात्रि में गयवरचंदजी को एकान्त में लेकर खूब समझाया और कहा कि पूज्यजी महाराज की आपके ऊपर पूर्ण कृपा है और यही कारण है कि हम लोगों को आपके लिए जल्दी से जल्दी भेजा है। तुम किसी हालत में भी मन्नालालजी के साथ पंजाब मत जाना। पूज्यजी महाराज की आज्ञा है कि गयवरचंदजी यहाँ पाजावें या हमारे (किस्तूरचंदजी के ) पास में रहें। अब, आपकी क्या इच्छा है वह स्पष्ट कहदो ताकि पूज्यजी महाराज को समाचार भेज दिया . जावे । इस पर आपने खूब दीर्घ दृष्टि से सोचा कि कुछ भी हो रहना तो पूज्यजी महाराज के पास ही कल्याणकारक है, और यह मेरो भूल है कि मैं पूज्यजी महाराज को छोड़ कर इधर-उधर भटक रहा हूँ; विना पूज्यजी महाराज की आज्ञा के आराधना किये मुझे शान्ति नहीं है, न जाने पूज्यजी महाराज मेरे लिए क्या