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आदर्श ज्ञान
विनती की, किन्तु आपको तो जाना था पूज्यजी की सेवा में।
अतः आपने कोटा से बिहार किया, कोटा और भानपुर के बीच में एक दर्रा नामका पहाड़ आता है । जब आप पहिले भान. पुर से कोटे गये थे तो उस समय पहाड़ तोड़ कर रेल्वे लाइन निकाली जा रही थी। उस समय हजारों मजदूर काम करते थे
और आस पास के कई महाजन लोगों ने दुकानें लगाई थीं; वहां आपका अच्छी तरह से निर्वाह हो गया था। उसी भरोसे से आपने इस बार भी पहिले ग्राम से बिहार कर दरें पर ठहरने के इरादे से दर के पहाड़ के पास आ पहुँचे, किन्तु वहां देखा तो एक मनुष्य के बच्चे तक को भी नहीं पाया, चारों ओर तीन २ चार २ कोस तक कोई ग्राम नहीं, दिन भी बहुत कम रह गया था, अब कहीं भी जाने का समय नहीं रहा। चारों ओर जंगल और पहाड़ ही नजर आते थे। सूर्य नारायण भी इस घटना को देख पश्चिम की ओर लोप हो गये ।
सुबह पूर्ण आहार भी नहीं मिला, थोड़ी सी छाछ और पानी मिला था; वह दो कोश पर ही काम में ले लिया। इस समय एक ओर तो क्षुधा और दूसरी ओर प्यास ने इस प्रकार सताया कि रात्रि शायद ही कुशलता से निकले।
इस निर्जन जंगल और पहाड़ों के बीच बिल्कुल अकेला आदमी कैसे ठहर सकता है, किन्तु उपाय ही क्या था ? तब आपने साहस के साथ सड़क के पास के एक झाड़ नीचे की भूमिका परिमार्जन कर श्रासन लगा दिया; तथा अपनी प्रतिक्रमणादि क्रिया में लग गये। इधर कृष्णपक्ष के तमस्कार ने अपना प्रभाव चारों ओर फैला दिया बस, जिधर दृष्टि डालो, उधर