________________
भीनासर में पूज्यजी महाराज के दर्शन
गेनमलजी साहब के कथन ने हमारे चरित्रनायकजी के रोम -रोम में स्थान कर लिया, और आपने कहा कि गेनमलजी आप का कहना अक्षरशः सत्य है और मेरा भी यही इरादा है कि मैं अब जल्दी जाकर पूज्यजी के चरणों की सेवा करू और पूज्यजी की आज्ञा को शिरोधार्य करलू । मैं सुनता हूँ कि शास्त्रकारों ने श्रावकों को साधुओं के माता-पिता के तुल्य बतलाया है, आप की नेक सलाह आज उसी बात का स्मरण करा रही है ।
८५
-
- भीनासर में पूज्यजी महाराज के दर्शन.
२०
हमारे चरित्र नायकजी ने तत्काल हो जावद से बिहार कर दिया और निमाहड़ा, नीमच, चित्तौड़, हमीरगढ़, भीलवाड़ा, इत्यादि ग्रामों में विहार करते हुए ब्यावर आ पहुँचे । इस विहार के दरमियान में जितने भी साधु मिले, उन्होंने आपको अपने पास में रखने की कई प्रकार से कोशिशें की एवं कई भांति के लालच भी बतलाये, किन्तु आपकी नजर तो पूज्यजी की ओर लगी हुई थी ।
ब्यावर में लालचन्दजी स्वामी बिराजते थे, आपको एक साधु की सख्त जरूरत थी । इधर हमारे चरित्र नायकजी जा पहुँचे, उन्होंने कहा गयवरचन्दजी आप अभी यहीं ठहरें, कारण भीनासर यहाँ से बहुत दूर है, गर्मी भी सख्त पड़ती है तथा प विहार भी बहुत करके आये हो । किन्तु आपने कहा कि कुछ भी हो, मुझे तो पूज्यजी के पास जाना है। लिए मैं अपनी थकावट उतारने को ठहर
केवल दो चार दिन के सकता हूँ ।