________________
भादर्श-ज्ञान
८६
दूसरे ही दिन श्रापका व्याख्यान हुआ, जिसको सुनकर सारा समुदाय प्रसन्नचित्त हो कहने लगा कि हम पूज्यजी महाराज के समाचार मंगवा लेवेंगे, आप चतुर्मास लालचंदजी महाराज के साथ यहीं करावें। ___ ब्यावर के श्रावकों ने भीनासर पत्र लिखा और एक आदमी को भी भेजा, किन्तु पूज्यजी महाराज ने स्वीकार नहीं किया और कह दिया कि लालचन्दजी को साधु की जरूरत है तो हम दूसरे साधु को भेज देवेंगे, किन्तु गयवरचंदजी वहाँ नहीं ठहर कर यहाँ आजावें। ___ बस, फिरतो उपाय ही क्या था? आपने विहार कर दिया और पीपड़ा जाकर कर्मचन्दजी महाराज के दर्शन किए । जेष्ठ के मास में सख्त गर्मी पड़ती थी, तबभी लंबे २ बिहार कर आसाढ़ कृष्णा ५ को आप भीनासर पहुँच गये । पूज्यजी महाराज को ज्ञात होने पर उन्होंने दो साधुओं को आपके सामने भेजा और कई श्रावक तो उदयरामसर तक सामने आये। जब भीनासर में पूज्यजी महाराज के दर्शन हुए तो आपकी आँखों से अश्रु धारा बहने लग गई पूज्यजी महाराज ने भी आपकी पीठ पर हाथ धर बहुत स्नेहपूर्ण शब्दों में आपका सत्कार किया, और दोनों तरफ से हुये सब कसूर क्षमा कर दिये । आपने कहा कि गयवरचन्दजी, तुम सच्चे त्यागी, वैरागी, और खानदान के हो, तथा तुम कसौटी पर सच्चे और खरे ही उतरे । अब पिछली बातों को याद नहीं करना, जो ज्ञानी ने भाव देखा वही बना है। जाओ गौचरी लाओ। ___आपने कहा कि मैं एकान्तर करता हूँ, आज मेरे उपवास है। तब आपने कहा कि अच्छा धोवण तो ले आओ। हमारे चरित्र