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________________ ७३ सोजत - चतुर्मास और आज्ञा-पत्र को प्राप्ति शुरु ये तो यहां केवलचन्दजी साधु मिले जो हमारे चरित्र नायकजों ने में इनके पास ही दीक्षा लेने का विचार किया था । उन्होंने कहा कहो गयबर, क्या हाल है ? गयवर ०. - हाल तो अच्छा ही है । केवल०—फिर अभी तक अकेला क्यों घूमता है ? का ही फल है । गयवर ०. -आप महात्माओं की कृपा केवल ० – तुम्हारी दीक्षा तो होगई है न ? गयवर ०- - जी हाँ । केवल ० – किसके पास और किसका शिष्य हुआ है ? i Copy गयवर० - मेंने स्वयं ही दीक्षा ली है । केवल ० – स्वयं दीक्षा तो तीर्थङ्कर या प्रतिबुद्धि लेते हैं, तो क्या तूं भी प्रतिबुद्ध है ? गयवर० – क्यों ? हमारे पूज्यजी तथा शोभालालजी ने भी स्वयं दीक्षा ली है । केवल ० – कहीं सूत्र में ऐसा उल्लेख है कि बिना गुरु दीक्षा ● हो सके ? गयवर० – सूत्र में तो मैं क्या समझता हूँ, मुझे तो जैसा पूज्यजी महाराज ने कहा वैसा मैंने किया है ? केवल० -- जब पूज्यजी की आज्ञानुसार किया तो फिर अकेला क्यों फिरता ? गयवर० - पूज्य जी का कहना है कि अपने कुटुम्बियों की आज्ञा लाने पर तुम्हारा आहार जल शामिल किया जावेगा । केवल ०- क्या दीक्षा लेने के बाद भी कुटुम्ब रह सकता है । गयवर० – महाराज जब मैं गृहस्थ था, तब आप लोगों की
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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