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आदर्श - ज्ञान
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केसरीमलजी मुलतानमलजी ने कहा कि आप यहाँ रह कर व्यापार न करें तो हमारा व्यापार अमरकोट में भी चलता है वहाँ पधार कर व्यापार कीजिये, हम आपको किसी भी हालत में जाने तो नहीं देंगे । इस पर आपने अमरकोट जाना स्वीकार कर लिया ।
६ - पिताजी की अन्तिम सेवा
गयवरचन्दजी जब अहमदाबाद पहुँचे तो बहुत से सज्जन आपकी अगवानी के लिए स्टेशन पर आये और नगर में ले गये, किन्तु मारे लज्जा के आपका सिर ऊँचा नहीं होता था । वहां आपके ससुराल पक्ष के बहुत से सज्जन थे । कुछ दिन अहमदाबाद में ठहर कर व्यापारार्थ अमरकोट चले गये । वहां कई मास ठहर कर आप मिर्जापुर गये, वहां से वापिस लौटते समय आप को अपने पिताजी के दर्शन की भावना अत्यन्त वेग से उमड़ उठी । दूसरे आप अपनी धर्मपत्नी राजकुँवरी से भी मिलना चाहते थे, श्रतएव चन्द दिनों के लिए आप बीसलपुर पधार गये । भाग्यवशात् मूताजी नवलमलजी साहिब आश्विन कृष्णा १० को एकाएक बीमार हो गये | गणेशमलजी भी दिसावर थे, दूसरे भाई अभी छोटे थे, आपको अमरकोट जाना जरूरी था किन्तु पिताजी की बीमारी के समय उनकी सेवा में रहना भी अत्यन्त आवश्यक समझा गया । आप पिताजी की सेवा में निरन्तर २० दिन रह कर अन्तिम टहल चाकरी-सेवा कर उनके