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आदर्श-ज्ञान ... वहां जाकर राजकुँवर को गयवरचन्दजी की आज्ञा से दीक्षा दिलवा दें; बाद गयवरचन्दजी की दीक्षा का मार्ग निष्कण्टक हो जावेगा।
१२-गणेशमलजी का रतलाम में आना
इधर गयवरचंजी और राजकुँवर के दीक्षा का निश्चय हो गया, उधर यह खबर बीसलपुर में पहुँची कि गयवरचन्दजी सहपत्नी रतलाम में हैं, और वे दोनों पूज्यजी श्रीलालजी महाराज के पास दीक्षा लेवेंगे । बस, सब कुटुम्ब में शोक के बादल छा गये । उन्होंने यकायक जोधपुर जाकर गणेशमलजी को परभनी तार दिया कि 'तुम रतलाम जा कर गयवरचन्दजी को लेकर बीसलपुर आओ।' तार के पहुंचते ही गणेशमलजी ने एक तार रतलाम गयवरचन्दजी को दिया कि 'मैं आता हूँ, आप वहीं ठहरें मिति कार्तिक शुल्का १४ को गणेशमलजी रतलाम आये । गयवरचन्दजी से तथा अपनी भावज से मिले । पहिले अपनी भावज से कहने लगे कि क्या आप भी दीक्षा लेने को तैय्यार हो गयीं हैं ?
. राजकुँवरः-मैं क्या करूँ, मेरा तो दिल नहीं है, किन्तु आपके भाई साहब ने मुझे दोक्षा लेने के लिए मजबूर कर रक्खा है। • गणेशमलः-क्या दीक्षा भी जबरदस्ती हो सकती है?