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पेशाब. चाण्डाल का योनी
और कपड़ों को धो कर भंडारीजी के पास आये और कहा कि भंडारी साहब, आपने यह क्या जुल्म कर डाला जो पानी के बदले पेशाब का लोटा दे दिया ? भंडारीजी ने कहा, वाह, आप दीक्षा लेने को तैयार हुए और पेशाब से इतनी घृणा । दीक्षा में तो सब कामों में इसका ही व्यवहार करना होगा। यह सुनकर गयवरचन्दजी तो बड़े हो लज्जित हो अफसोस करने लगे। भंडारीजी ने कहा कि आपके दिलमें कुछ शंका हो तो पूज्यजी के पास चलो । गयवरचन्दजी ने सोचा कि क्या पूज्यजी महाराज यह कहेंगे कि तुम टट्टी जाकर पेशाब से शौच-शुद्धि कर लेना। बस, भंडारीजी और गयवरचन्दजी पूज्यजी के पास आये और भंडारीजी ने सवाल किया कि गयवरन्दजी दीक्षा लेने को तैयार हो रहे हैं और पेशाव से इतनी घृणा है कि हाथ में लेने मात्र से कुएँ पर जाकर स्नान कर एवं कपड़े धोकर असंख्य अपकाय के जीवों की हिंसा कर डाली है । आप इनको अच्छी तरह से सम. मावें।
पूज्यजी ने कहा कि गयवरचन्दजी ने अभी तक शास्त्र न पढ़े हैं, और न सुने हैं !
गयवर०-क्या शास्त्रों में पेशाब को इस प्रकार काम में लेना लिखा है ?
पज्यजो-हां, लिखा है, तब ही तो हम लोग पेशाब को काम में लेते हैं। __ तुम गृहस्थ हो, अभी तक तुमका सुमति, गुप्ति की मालूम नहीं है । दूसरे, सब शरीर में यही स्थान उत्तम है, इसी खान से बीर्थङ्कर चक्रवर्ती पैदा होते हैं, अतएव पेशाब से घृणा करने वाला