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आदर्श - ज्ञान
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तो आपको ज्यों २ अधिक तपाया गया त्यों २ आपकी दीक्षा का रंग अधिक रंगित होता गया किन्तु फिर भो जैसे तैसे समय निकलते २ फाल्गुन मास का प्रारम्भ आ पहुँचा ।
ज्यों ज्यों दीक्षा का मुहूर्त्त नजदीक आता गया त्यों त्यों मुताजी की घबड़ाहट बढ़ती गई आपने कई उपायोंका अवलम्बन किया पर वैराग्य-मस्त गयवरचन्दजी पर उसका कुछ भी प्रभाव नहीं हुआ आखिर में मुताजी ने एक दिन गयवरचन्दको एक कोठरी में डाल कर उसके द्वार पर ताला लगादिया - दो रात्रि और एक दिन आप कोठरी में बन्द रहे पर ऐसा करने से आपका वैराग्य शिथिल नहीं पर और भी मजबूत होगया; इस हालत में मुताजी हताश होगये और गवरचन्द को घर में रखने के लिये सरकारी मदद के उपाय सोचने लगे
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७ - दीक्षा के नाम पर एक साधु पर व्यर्थक्षेप
वि० सं० १९५८ में पूज्य जैमलजी की समुदाय के साधु शोभाचंदजी का चतुर्मास बीसलपुर में हुआ। हमारे चरित्रनायक जी आपके पास सदैव आया जाया करते एवं व्याख्यान भी सुनते थे, पर स्वामिजी श्रावार पालन में शिथिल थे अतः उनकी ओर आपकी रुचि थी। जब आपने अपनी बीमारी में दीक्षा की प्रतिज्ञा की थी, पर दीक्षा किसके पास लेनी चाहिये, तब इस विषय में यह निर्णय किया कि आपके और आपके पिताश्री के गुरु