Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
यद्यपि सरल या सम्पादित और सरल, कुटिल, सम्पादित, असम्पादित, मनोगत विषयोंको जाननेकी अपेक्षा अपने वाचक ऋजु और विपुल शद्बोंकी सामर्थ्यसे निरुक्तिद्वारा ही दोनों मनःपर्ययोंके परस्पर भेद कहे जा चुके हैं, फिर भी उन दोनोंकी अन्य विशेषताओंके कारणोंका सम्वेदन करानेके निमित्त " विशुद्धयप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः " यह सूत्र श्री उमास्वामी महाराजने आरब्ध किया है।
नर्जुपतित्वविपुलमतित्वाभ्यामेवर्जुविपुलमत्योर्विशेषोऽत्र प्रतिपाद्यते । यतोनर्थकमिदं स्यात् । किं तर्हि विशुद्धयातिपाताभ्यां तयोः परस्परं विशेषान्तरमिहोच्यते ततोऽस्य साफल्यमेव ।
इस वार्तिकका विवरण यों है कि ऋजुमतिपन और विपुलमतिपन करके ही ऋजुमति और विपुलमतिका विशेष ( अन्तर ) यहां सूत्र द्वारा नहीं समझाया जा रहा है, जिससे कि यह सूत्र व्यर्थ पड जाय। तो फिर क्यों कहा जाता है ? इसका उत्तर यों है कि विशुद्धि और अप्रतिपात करके भी उन ऋजुमति और विपुलमति ज्ञानोंका परस्परमें नवीन प्रकारका दूसरा विशेष है, जो कि यहां इस सूत्रद्वाला कहा जा रहा है । तिस कारण श्री उमास्वामी महाराज द्वारा कहे गये इस सूत्रकी सफलता ही समझो अर्थात् -दोनोंके पूर्व उक्त विशेषोंसे भिन्न दूसरे प्रकारके विशेषोंको यह सूत्र कह रहा है।
का पुनर्विशुद्धिः कथाप्रतिपातः को वानयोर्विशेष इत्याह ।।
फिर किसीका प्रश्न है कि विशुद्धि तो क्या पदार्थ है ? और अप्रतिपात क्या है ! तथा इनका विशेष क्या है ! इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्रीविद्यानन्दस्वामी उत्तर कहते हैं।
आत्मप्रसत्तिरत्रोक्ता विशुद्धिर्निजरूपतः। प्रच्युत्य संभवश्वास्याप्रतिपातः प्रतीयते ॥२॥ ताभ्यां विशेष्यमाणत्वं विशेषः कर्मसाधनः ।
तच्छद्वेन परामर्शो मनःपर्ययभेदयोः ॥३॥
इस प्रकरण में प्रतिपक्षी कोके विगमसे उत्पन्न हुयी आत्माकी प्रसन्नता ( स्वच्छता ) तो विशुद्धि मानी गयी है । और इस आत्माका अपने स्वरूपसे प्रच्युत नहीं हो जाना यहां अप्रतिपात धर्म प्रतीत हो रहा है । उन धर्मोके द्वारा विशेषताओंको प्राप्त हो रहापन यह विशेष कहा गया है। क्योंकि यहां वि उपसर्गपूर्वक शिषधातुसे कर्ममें घञ्प्रत्यय कर विशेष शब्द साधा गया है। तद्विशेषःमें कहे गये पूर्वपरामर्शक तत् शब्द करके मनःपर्ययवानके ऋजुमति और विपुलमति इन दो भेदोंका परामर्श किया गया है । इस प्रकार सूत्रका वाक्यार्थ बोध बच्छा बन गया। .