Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ०१
जीवस्य षड्भावनिरूपणम् ६७ नतु--आवृता ग्रहणात् प्राप्यताऽस्य युक्ता, मित्तकुडयादिनेव काचादिनापि व्यावधानात् काचादिव्यवहितस्याऽपि रूपादेश्चक्षुषाऽग्रहणापत्तिः स्यात् , तुल्ययुक्त्या मनसोऽपि भित्याद्यावृतस्य वस्तुनो ग्रहणाभावेन सर्ववादिसिद्धस्य तस्याऽप्राप्यकारित्वस्याऽसिद्धापत्तिः अथैवमपि चक्षुरादीन्द्रियावत् सुख-दुःखेच्छादीनामपि जीवलक्षणत्वादिन्द्रियत्वापत्तिरिति चेत्-!।
मैवम्--जीवलिङ्गंयद्भवे तत्सर्वमिन्द्रियमिति नाऽयं नियमः आश्रीयते, किन्तु -यदिन्द्रियंतज्जीवलिङ्गमित्येवं नियमः । तथाच----जीवलिङ्गं कदाचित् सुखादिकं भवतु, इन्द्रियं वा, इत्यन्यदेतदित्यवधेयम् । तथाचोक्तम्
"कइणंभंते- ! इन्दिया पण्णत्ता-! गोयमा- ! पंचेंदिया पण्णत्ता, तं जहा- सों इन्दिए चक्खिदिए धाणिं दिए जिब्मिदिए फासिदिए त्ति ,, प्रज्ञा-१५ इन्द्रियपदम् । कति खलु भदन्त-!
इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि । गौतम-- १ पञ्चेन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा--श्रोत्रेन्द्रियम्- १ चक्षुरिन्द्रियम्- २घाणेन्द्रियम्- ३ जिलेन्द्रियम्- ४ स्पर्शनेन्द्रियम्-५ इति ॥१७॥
मूलसूत्रम् ---"पुणादुविहं भाविदियं दबिदियंय-" ॥१८॥ छाया- "पुनर्द्विविधम् , भावेन्द्रिय-द्रव्येन्द्रियञ्च-'' ॥१८॥
तत्त्वार्थदीपिका—पूर्वसूत्रे-सामान्यतो ज्ञानेन्द्रियाणि पञ्चविधानि सन्ति इति प्रतिपादितम् , सम्प्रति तान्येवेन्द्रियाणि पुनः प्रकारान्तरेण प्रतिपादयितुमाह - "पुणादुविहं भाविंदियं- दबिदियंय-- ,, इति ।
शंका जैसे चक्षु आदि इन्द्रियाँ हैं, उसी प्रकार सुख, दुःख़ और इच्छा आदि भी जीव का लक्षण होने से इन्द्रिय होने चाहिए।
समाधान-ऐसा नियम नहीं है कि जो जीव का लिंग हो वह सब इन्द्रिय है । अतएव सुख आदि कदाचित् जीव के लिंग हो सकते हैं तथापि उन्हें इन्द्रिय नहीं कहा जा सकता। प्रज्ञापता सूत्र के १५ । इन्द्रियपद में कहा है
प्रश्न-भगवान् ! इन्द्रियाँ कितनी कही हैं ?
उत्तर-गौतम ! पाँच इन्द्रियाँ कही हैं यथा-श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुइन्द्रिय, घोणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय ॥१७॥
मूलसूत्रार्थ “पुणादुविहं भाविंदियं इत्यादि ॥१८॥ इन्द्रिय पुनः दो प्रकार की है-भावेन्द्रिय और द्रव्येन्द्रिय ॥१८॥
तत्त्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्र में इन्द्रियाँ पाँच प्रकार की बतलाई गई हैं । उन्हीं इन्द्रियों का प्रकारान्तर से प्ररूण करने के लिए कहते हैं-इन्द्रियाँ दो प्रकार की हैं--भावेन्द्रिय और द्रव्येन्द्रिय । इस प्रकार स्पर्शन आदि पाँचों इन्द्रियाँ द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय के भेद से दो-दो
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧