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* यावत्नावच्छिन्नाभावस्य चित्रकारणता * रात -> नीलपीतोभयाभाव-पीतरतोभयाभावादीनां स्वसमवायिसमवेतत्वसम्बन्धावछिमप्रतियोगिताकानां समवायावच्छिमप्रतियोगिताकानां च विजातीयविजातीयपाकोभयाभा
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*रूपासमवापिकारणविशिष्टरूपासमवायिकारणवस्य तथात्वगिति विशेपस्तथापि कारणलावन्दकनाघटकसंम्पर्गगरीरगौरवमभयत्रच, प्रथमकल्पे द्विविधकार्यकारणभावकल्पनं चित्ररूपवजात्यद्वयकरपनञ्चाधिकमा । यद्यपि द्वितीयकल्पवयप पाकान नानारूपोत्पत्त्यनन्तरमेव निकामयसम्बन्धन रूप विशिष्ट पादेवावयविनि समवायन चित्ररूपाल्पनिः स्वीक्रियत इति न द्विविधकार्यकारणभावकल्पनागौरवं तथापि द्वितीयकला कारणतावच्छेदक शरीर महागौरबम्, कपासमनायिकारणविशिष्टासमवाविकारणत्यस्य रूपवत्वविशिष्टविशिष्टरूपवत्वविशिष्टत्वस्वरूपत्वाभ्युपगमात, आधान्तिम शिष्ट्रय जनकताविशंषसम्बन्धन मध्यम च हन निमक्तोभयसम्बन्धन चोध्यम् । अप्रामाणिकगौरवग्रस्तत्वन मतद्वयमनुपादयत्यभिप्रायः ।
जन समायेना-वर्यावनि चित्ररूप कनित स्वममवापिसमवेतत्त्वसम्बन्धन नालगनोभयग्य पीतरकभियादा मच्च जायते, कचिच्च नमवागन विजातीयरूप-विजातीयरूपजनकपाकाः सच्चे उपजायते । अतस्तदनुगंधन लाघवात् बसमवायिसमनतासम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताकानां नीलपीतोभय-पीतरनाभयाभानादीनां समवायसम्बन्धावच्छिन्न प्रतियोगिताकानां विजानीयरूपविजातीयरूपजनकपाको भयाभावादीनां स्वरूपसम्बन्धन यावत्त्वावच्छिन्त्रप्रतियोगिताक एक एवाभावः समवायन चित्रसामान्य प्रति हलुरित्यागयवनां मतं स्वस्तिमपनयति -> यत्त्विति । तन्नत्यनेनाग्रे म्यान्वयः । उपप्रायमेतत् विशषभावना वम् नालगीतकालद्धयारब्ध घटे. स्वसमवापिसमवेतत्त्वावच्छिन्नप्रतियोगिताकस्य नील-पीता भयाभावस्य स्वरूपसम्बन्धन विरहात् निरुक्तयावच्चावच्छिन्नप्रतियोगिताको भाव: स्वरूपसम्बन्धन वर्तत इति तत्र समन्यायेन विनोत्पत्ति: मुघटा । नीलकपालद्वयारचे घंटे तु स्यम्पसम्बन्धन निरुक्ता नाळपातीभवादयः विजातीवरूप-विजातीयरूप जनकपाकोभायाभावादयश्च वर्नन्त इति स्वरूपसम्बन्धन निरुक्यायन्यायच्छिन्नप्रतियोगिताकस्या भावम्य चिन्हेण चित्ररूप नापजायते, कारणविरह कायोत्पादाव्यांगात् । नीलकपालद्रयाग्ध घंटे केवलं प्रथमनीलकपालारच्छदन समगायन पीनरूपजनकविजानीयाणकारचदहशायां तु रमवायमम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताकस्य नामरूपलक्षणविजातीयरूप-तद्विजानीयापानरूपजनकपाकोभयाभावस्य स्वरूपसम्बन्धन विरहेण निरुक्मयावच्चावच्छिन्न प्रतियोगिताकस्याभावस्य स्वरूण मत्त्वान समवायन चित्ररूपांत्यनिनिंरावाधा । नतश्च रागवायन चित्रल्यान्छिन्नं पनि चापसम्बन्धेन निरुक्तयावाचावनिछन्नप्रतियोगिताकामाववनवम्यानभावस्य हेतनि अनुमनाभिप्रायः । मन में द्विविध कार्य-कारणभाव के स्वीकार का गौरव तो नहीं है, मगर कारणतावदकाम रूपवत्त्वविशिष्टविशिष्टरूपवत्वविशिष्टत्व तो स्पष्टतया गुरुतर हो जाता है। यहाँ प्रथम और तृतीय वैशिष्ट्य जनकतासम्बन्ध से ग्राब है एवं द्वितीय वैशिष्टय स्वबैजान्य - स्वसंवलितत्व उभयसम्बन्ध में उपादेय है । मतद्वप अप्रामाणिक गौरव से ग्रस्त होने में अमान्य है. यह तात्पर्य है ।
* वि. Pleण यावाचावरियाप्रतियोगिताक अभाववि.ले.प. - अन्रागत
चनु, इति । अन्य विद्वानों का यह वक्तव्य है कि → 'नील-पीन एवं पीत-नन आदि स्वसमचाथिसमवेनत्व सम्बन्ध से जिसमें रहते हैं उसमें चित्र रूप की उत्पत्ति होती है । इसी प्रकार जिसमें विजातीय चित्ररूपजनक विजातीपपाक समवायसम्बन्ध से रहता है अथवा विजातीय रूप और विजातीयरूपान्तरजनक पाक समवाय सम्बन्ध में रहना है, उसमें भी चित्र रूप की उत्पत्ति होती है। वह इस नरह . नील कपारद्वय में उन्पन घट में विभिन्न अवयवावच्छेदन विजातीयरूपढ़य का जनक पाक होने पर घर में चित्र रूप की उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार नालकपालद्धय से उत्पन्न यट में किसी एक कपालावच्छेदन विजातीयरूपजनक पाक का सनिधान होने पर भी चित्र रूप की उत्पत्ति होती है। इन सभी स्थितिओं के संग्रहार्थ स्वसमवायिममवतत्व सम्बन्ध में नीलापीतोभयाभाव पीतरक्कोभयाभार आदि अभाव और समवायसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताक विजातीयविजातीयपाकोभयाभाव • इन सब अभावों का जो स्वरूप सम्बन्ध से यावत्वावच्छिन्त्रप्रतियोगिताक अभाव, वहीं एक अमाव सर्वत्र समवाय सम्बन्ध में चित्ररूपमामान्य का कारण है। मतलब यह है कि जहाँ समस्त ये अभाव रहेंगे बहाँ यावत् अभाव का अभाव नहीं होने की वजह कारण का वाध होने से समवाय सम्बन्ध मे चित्र रूप की उत्पत्ति न होगी । जहाँ इन अभावों में में कोई एक अभाव न होगा जैगे नील - पीनकपाल से घटोत्पत्तिस्थल में घट में स्वसमवापिसमबेनत्वसम्बन्ध से नील-पीनांभयाभाव नहीं होगा। यहाँ उपर्युक्त सभी प्रभावों का यावत्त्वावच्छिन्न प्रतियोगिताक अभाव होने की वजह समवाय सम्बन्ध में चित्र रूप की उत्पनि होने में कोई बाधा होती नहीं है । -