________________ द्वितीय प्रस्ताव। द्वारपालने सभामें आकर कहा, "हे स्वामी! आपसे मिलनेके लिये कोई ज्योतिषी राजमहलके द्वारपर आया हुआ है। क्या उसे यहाँ ले आऊँ अथवा जानेको कह दूँ ?" राजाने उसे सभामें ले आनेकी आज्ञा दे दी। उसने सभामें आतेही राजाको आशीर्वाद दिया और उचित आसन पर जा बैठा / राजाने पूछा, "हे निमित्तज्ञ ! तुम्हारे हाथमें पोथी है, उसे देखकर तुम जो कोई शुभाशुभ जानते हो, वह मुझे बतलाओ।" ज्योतिषीने कहा,-"महाराज! मैंने गणना करके जो कुछ मालूम किया है, उसे कहनेको तो समर्थ नहीं था ; पर जब आपने आज्ञा दी है, तब कहता हूँ, कि आजके सातवें दिन पोतनपुरके स्वामीके सिरपर अवश्य ही बिजली गिरेगी।”. यह सुनते ही सारी सभा वजाहत सी दुःखित हो गयी। श्रीविजय राजाने उसी समय क्रोधसे तमतमाते हुए कहा,___ “रे दुष्ट ज्योतिषी ! यदि पोतनपुरके स्वामीके सिरपर बिजली गिरेगी, __ तो तेरे सिरपर क्या गिरेगा ?" ज्योतिषीने कहा,-- "राजन् ! आप मेरे ऊपर क्यों क्रोध करते हैं ? मैंने जो कुछ गिनती करके मालूम किया है, वह झूठा नहीं हो सकता। सच जानिये, जिस समय आपके सिरपर बिजली गिरेगी, उसी समय मेरे सिरपर वस्त्र, आभूषण और रत्नोंकी वृष्टि होगी।" राजाने फिर पूछा,-" यह निमित्त-शास्त्र तूने किससे सीखा है ?" उसने कहा,-"राजन् ! सुनिये। जिनसे बलदेवने दीक्षा ली थी, उन्हींसे मैंने भी दीक्षा ली थी। कुछ समय तक तो मैंने उसका पालन किया। उसी समय मैंने जो शास्त्राध्ययन किया था, उसीके प्रभावसे इस प्रकार आपसे कुछ कह सकता हूँ, सर्वज्ञके शासनके सिवा और किसी शास्त्रसे सत्यका ज्ञान नहीं होता। इसके बाद मैं विषयों में आसक्त होकर गृहस्थ हो गया। आज धनकी ही आशासे मैं आपके .. पास आया था।" यह सुन, सब राजकर्मचारी उसके निमित्त-शानको सच समझ कर अपने स्वामीकी रक्षाका उपाय सोचने लगे। ___एक मन्त्रीने कहा,-" सात दिन तक हमारे स्वामी समुद्र में जहाज़के अन्दर रहें, तो ठीक हो। एक दूसरे मन्त्रीने कहा,-.-"माना, कि P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust