Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 349
________________ 324 rammmmmmmmm श्रीशान्तिनाथ चरित्र / जिनदत्तके दुःखका नाश करनेके लिए शुद्ध-बुद्धिसे कायोत्सर्ग किया। उसके शीलके प्रभावले तथा श्रेष्ठ भक्तिसे प्रसन्न होकर शासनदेवीने जिनदत्तकी मजबूत सूलीको भी पुराने तृणकी तरह तीन टुकड़े कर दिया। तब सिपाहियोंने उसके गलेमें फाँसी डाल, उसे एक वृक्षकी शाखामें लटका दिया। वहाँ भी देवताने उसकी फाँसी तोड़ डाली। यह देख, क्रोधमें आकर कोतवालके आदमियोंने उसके शरीर पर खड्गका प्रहार किया। उस प्रहारको देवताने उसके शरीर पर फूलमालाकी तरह कर दिया। उसका यह बढ़ा-चढ़ा हुआ प्रभाव देख, सिपाही बड़े अचम्भेमें आ गये और राजासे जाकर उन्होंने सब हाल कह सुनाया। राजा भी भय और आश्चर्यके साथ उसके पास आ पहुँचे और उसका ऐसा प्रभाव देख, उसे हाथीपर बैठाकर अपने घर ले आये। तदनन्तर उन्होंने उससे बड़ी नम्रताके साथ सारा हाल सच-सच बतला देनेको कहा। इसके उत्तरमें उसने सारा कच्चा चिट्ठा कह सुनाया। यह सुन, राजा कोतवालपर बड़े बेतरह नाराज़ हुए और उसका बध करने का हुक्म दे दिया। परन्तु दयालु जिनदत्तने राजाले प्रार्थना करके उसे छुड़वा दिया। उस समय राजाने उससे कहा,-"रे दुष्ट ! जो तेरी तरह, एक सम्यग्दृष्टिवाले धर्मात्माको मिथ्या दोष लगाता है, उस दुष्टका तो बध करनाही ठीक है।” जिनदत्तने कहा, "हे राजन् ! मेरे ऊपर आये हुए कष्टोंके लिये आप इस बेचारेको क्यों दोष देते हैं ? इसका क्या अपराध है ? यह सब मेरे कर्मों का दोष था।” इसके बाद राजाने सन्तुष्ट होकर उसपर पञ्चाङ्ग प्रसाद किया और बड़े उत्सवके साथ उसे घर पहुँचवा दिया / उसे देखकर उसके माता-पिता आदि सभी स्वजन बड़े हर्षित हुए। उसी समय प्रियमित्रने आकर जिनदत्तसे कोतवालके आने और जिनमतीके शासनदेवताका आराधना तथा कायोत्सर्ग करने / आदिका वृत्तान्त कह सुनाया, जिसे सुनकर वह अपने मनमें बड़ा आनन्दित हुआ इसके बाद शुभ दिनको जिनदत्तने बड़ीधूम-धामसे जिनमतीके साथ विवाह किया और कुछ कालतक उसके साथ संसारिक सुख P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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