________________ 364 श्रीशान्तनाथ चरित्र। ___इसी समय चक्रायुध राजाने खड़े होकर प्रभुकी वन्दना कर, दोनों हाथ जोड़े हुए विनती की,–“हे समस्त संशय-रूपी अन्धकारको नाश करने में उत्तम सूर्यके समान और तीनों लोकोंसे वन्दना किये जाते हुए श्रीशान्तिनाथ प्रभु ! तुम्हें नमस्कार है। हे प्रभु! मेरी दुष्कर्म रूपी बेड़ियोंको काट कर तथा राग-द्वेष रूपी शत्रुका नाश कर, मुझे इस संसार-रूपी कारागृहसे मुक्त करो। हे जिनेश! निरन्तर जन्म,रा और मृत्युकी आगमें जलते हुए इस भवरूपी गृहसे दीक्षा-रूपी व. लम्बन देकर मुझे बाहर निकाल लो।" इस प्रकार श्रीशान्तिको यसे विनती कर, अत्यन्त वैराग्य प्राप्त हो, चक्रायुध राजाने पैंतीस रो . के साथ प्रभुसे दीक्षा ग्रहण कर ली। इसके बाद उन्होंने प्रभुसे पूछा, "हे स्वामिन् ! तत्व क्या प्रभुने कहा,-"उत्पत्ति-यह पहला तत्व है।" तब बुद्धिमान् ने एकान्तमें जाकर विचार किया,-"ठीक है। समय-समय पर नरक तिर्यंच, मनुष्य और देवगतिमें जीव उत्पन्न हुआ करते हैं / पर यदि .. इसी तरह समय-समय पर उत्पन हुआ ही करें, तो वे तीनों भुवनमें न समायें, इसलिये उनकी कोई-न-कोई और गति अवश्य होगी।" ऐसा विचार कर उन्होंने फिर भगवान्से पूछा, "हे भगवन् ! तत्त्व क्या है ?" प्रभुने दूसरा तत्त्व “विगम" बतलाया। यह सुन, उन्होंने फिर सोचा,-"विगमका अर्थ नाश है। इसका मतलब यही है, कि समय-समय पर जीवोंका नाश हुआ करता है। पर यदि योंही विनाश हुंआ करे, तो जगत् ही सूना हो जाये / " ऐसा विचार कर, उन्होंने फिर पूछा,- "हे भगवन् ! तत्त्व क्या है ?' तब भगवानने तीसरातत्त्व "स्थिति” बतलाया। इससे समस्त जगत्का ध्रौव्य-स्वरूप जान, चक्रायुध राजर्षिने इन तीनों पदोंके अनुसार द्वादशाङ्गीकी रचना - की। इसी तरह अन्य पैंतीसों मुनियोंने भी भगवान्के मुंहसे त्रिपदी सुन कर द्वादशाङ्गीकी रचना की। इसके बाद वे सब जिनेश्वरके पास गये। * उन्हें इस प्रकार बुद्धि-वैभवसे सम्पन्न जान, P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust