Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 443
________________ 418 "कम श्रीशान्तिनाथ चरित्र / सब मैंने इस ग्रन्थमें नहीं लिखा। जिन तीर्थङ्करके तीर्थ पूरे एक करोड़ साधु सिद्ध हुए हैं, उन्हींका हाल इसीसे इसे कोटिशिला कहते हैं। इस कोटिशिलार्थकी ARE अनेक चारण-मुनि, सिद्ध, यक्ष, सुर और असुरा भक्ति-पूर्वक वन् करते हैं। - इस ग्रन्थमें मैंने श्रीशान्तिनाथ प्रभुके बारहों भावोंका हाल लिखा है, श्रावकोंके बारहों व्रतोंकी बात कथा सहित बतलायी है और प्रथम गणधार चक्रायुधका दिया व्याख्यान भी लिख दिए। इस प्रकार श्रीशान्तिनाथ जिरेलको समग्र चरित्र मैंने वर्णन कर दिया। "यस्योपसर्गाः स्मरे , यान्ति, विश्वे यदीयाश्च गुणा न मान्ति / __ मृगांकलक्ष्मा कनकस्य कान्तिः, संघस्य शान्तिं स करोतु शान्तिः // 1 // " ___ अर्था---'जिनके स्मरण से सारे उपसर्ग नष्ट होते हैं, जिनके गुण सारे विश्व में भी नहीं समाते, जिनके मृगका लाञ्छन है, और जिनके शरीरकी कान्ति सुवर्णके समान है, वे श्री शान्तिनाथ परमात्मा श्री संघके उपद्रवोंकी शान्ति करें। तथास्तु / a समाप्त P.P.AC.Gunratnasuri M.S. in Gun'Aaradhak Trust

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