________________ 416 श्रीशान्तिाथ चरित्र। प्राप्त किया। तब सभी सुरेन्द्र, अपने-अपने परिवारके साथ./ तिनाथ महाप्रभुके निर्वाणका वृत्तान्त जान, शोकसे अश्रुपात लगे और प्रभुके गुणोंका स्मरण करते हुए उत्तर-वैक्रिय 'पृथ्द पर आये तथा विलाप करने लगे,-"हा नाथ ! हे सन्देह-पी अन्धकार को नष्ट करनेमें सूर्यके समान शान्तिनाथ भगवान् ! हो त्वामी-रहित करके तुम कहाँ चले गये ? हे नाथ ! अब तुम्हारे ना हमें अपनी-अपनी भाषामें सबकी समझमें आने योग्य और सब जन्तुओंको हर्ष देनेवाली देशना कौन सुनायेगा ? लोकको पीडा देनेवाले दुर्भिक्ष, बाढ़ और महामारी आदि उपद्रवोंकी अब प्रभावसे शान्ति होगी? तथा हे स्वामी! अपना देव-भव- यो कार्य छोड़, पृथ्वी-तल पर आकर अब हम किसकी सेवा करें?" इस प्रकार विलाप कर सब इन्द्रोंने क्षीरसागरके जलसे स्वामीके शरीर-स्नान करा, नन्दन-वनसे मंगाये हुए हरिचन्दनके सुगन्धितं काष्टको घिसकर उसका भगवानके शरीरपर भक्तिपूर्वक लेपकर, प्रभुके मुँहमें कपूरका चूर्ण डाला और देव-दूष्य वस्त्रसे उनके शरीरको टैंक दिया। इसके बाद कृष्णागारुकी सुगन्धसे सब 'दिशाओंको वासित कर, मन्दार और पारिजात आदिके पुष्पोंसे प्रभुकी पूजा कर, रत्नोंजड़ीश्रेष्ठ शिविकामें उनके शरीरको पधराया। इसके बाद नैऋत्य-कोणमें चन्दन काष्टकी चिता बना, वे उस शिविकाको उसके पास ले आये और उसे उठाकर चितामें डाल दिया। अन्य वैमानिक देवोंने अन्य मुनीश्वरोंका संस्कार-कार्य भी उसी प्रकार किया। इसके बाद अग्निकुमारदेवोंने पूर्वकी ओर मुँह किये हुए उस चितामें अग्निडाली और वायुकुमार देवोंने हवा चला कर अग्नि प्रज्वलित कर दी। इसके बाद जब भगवान्के शरीरके रुधिर-मांस दग्ध हो गये, तब मेघकुमार देवोंने सुगन्धित और शीतल जलकी वर्षा कर, उस चिताग्निको,शान्त कर दिया। इसके बाद भगवान्की भक्तिसे प्रेरित होकर उनकी ऊपरकी दाहिनी डाढ़ सुधर्मेन्द्रने ली, नीचेकी दाहिनी डाढ़ चमरेन्द्रने ली, ऊपरकी बायीं डाढ़ ईशानेन्द्रने ली और नीचेकी बाँयीं डाढ़ बलीन्द्रने . Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.