Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 439
________________ 414 . श्रीशान्तिनाथ चरित्र / “जणणी य जम्मभूमी, पच्छिम निद्दा य अभिनवं पिम् / , सज्जणजणाण गुठी, पंच वि दुक्खहिं मुञ्चन्ति // 6 - अर्थात्- "जननी, जन्मभूमि, पिछली रातकी निद्रन प्रेम और सज्जनोंकी गोष्ठी—ये पाँचों चीजें दुःखमें ही छो जाती हैं - अर्थात् बड़ी मुश्किलसे छूटती या भूलती हैं।" इसी तरह उस भीलको बनका वह स्वच्छ / विहार और अपनी स्त्री तथा परिवार विस्मृत नहीं होते थे, क्योंकि यदि ऊँट नन्दन-वनमें भी जा पहुंचे और कंकेलि-वृक्षके पलनोंका अहार करे, तो भी उसे अपनी मरुभूमिकी याद बनी रहती .सी तरह उस भीलके मन में निरन्तर अपने स्थानादिका स्मरा ना रहता था; पर चूँकि उसके पास सदा सिपाहियोंका पहरा रहता था, इसीलिए वह अपने घर नहीं जा सका और कुछ दिनों तक वहीं पड़ा रहा। एक दिन वर्षा ऋतुमें मेघोंकी उनक और बिजलीकी कड़क सुन, उसे विरह सताने लगा। कहा भी है, कि- : "मेघगर्जारवो विगुद्विलासः केकिर्ना स्वरः / दुःस्सहो विरहान्नामेकैको यमदण्डवत् // 1 // " ___ अर्थात्--“मेघकी गर्जना, बिजलीकी चमक और मोरका शोरइनमें से प्रत्येक यमराजके दण्डकी तरह वियोगीके लिये दुःस्सह होता है।" . उस समय उस वियोग-व्याकुल भीलने अपने मन में सोचा,—“यदि मैं इन वस्त्रालङ्कारोंको यहाँसे लेता जाऊँगा, तो पीछे मेरी खोज होने लगेगी, इसलिये मुझे यहाँसे नङ्गा ही चल देना चाहिये।” ऐसा विचार कर, वस्त्रालङ्कार उतार; किसी तरह पहरेदारोंकी आँखें बचा, वह रातके समय राजमन्दिरसे बाहर निकला और धीरे-धीरे अपने स्थानको चला गया। उस समय उसका बदला हुआ रूप देख, उसके परिवारके लोगोंने आश्चर्यके साथ उससे पूछा,-'अरे! तू कौन है ?" उसने कहा,"मैं तुम्हारा कुटुम्बो हूँ।" यह सुन, उसके परिवारवालोंने उसे पहचान कर पूछा,-"इतने दिन तुम कहाँ रहे ? तुम्हारे शरीरकी कान्ति P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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