________________ AAAAAAAAA----- भाषष्ठ प्रस्ताव 406 कह सुनायी। यह सुन, यमघंटाने हँसकर कहा,-"अरे तुम्हारी चालं निरी ग़लत है। तुमने जो उसे पहले ही धन दे दिया, यह अच्छा नहीं किया।" : उसने कहा, "मैंने उसका सारा धन हड़प करनेके लि. मछली फँसानेके चारेकी तरह अपना धन दिया है।" बुढ़ियाने पिर कहा,-"अरे! उसका धन कोई नहीं ले सकता।" यह सुन; जुआरीने कहा,-"वह भला मेरे फन्देसे कैसे छूट सकता है ?" यमघ ने कहा,- "वह यदि कहे, कि मेरे पास बहुतोंकी आँखें निरवीं र है ; इसलिये तुम अपनी दूसरी आँख भी दे दो, तो मैं कांटेसे वाकर देखू, कि तुम्हारी आँख के है। बिना ऐसा किये पता महा चलेगा। उस समय तुम क्या जवा योगे?" यह सुन, जुआ रीने कहा,-"अम्मा! यह हथकंडे तो तुम्हें ही याद हैं :-उसे इनसे भेट कहाँ ?" यह कह, वह भी चला गया, इसके बाद पूर्वोक्तं चारों धूर्तीने भी अपनी बात यमघंटासे आकर कही। वह सुनकर बुढ़ियाने कहा, 'मुझे तो तुम्हारे इस प्रपंचमें कोई सार नहीं नज़र आता। क्योंकि वह तुमसे कहेगा, कि मैं समुद्रके जलका प्रमाण तुमसे कहें देता हूँ, पर पहले तुम लोग उन सब नदियोंको दूर करो, जिनके जल उसमें आकर मिलते हैं / जव वह यह बात कहेगा,तब क्या तुममें नदियोंका जल दूर करनेकी शक्ति है, जो दूर करोगे?" उन्होंने कहा,-- "वह ऐसा नहीं है।" तब बुढ़ियाने कहा,--"सच जानो, तुम्हीं लोग अपनी बेवकूफ़ीसे अपना सर्वख हार आओगे।" यह सुन, वह भी अपने घर चला गया। ... .... . उसकी इन बातोंको रत्नचूड़ने गुरु-वाक्यकी तरह हृदयमें धारण कर लिया और वड़ा हर्ष अनुभव किया। इसके बाद वहाँसे उठ कर वह रणघंटाके साथ उसके घरमें पाया और अपनी मरदानी पोशाक पहन उससे विदा मांग कर अपने स्थानपर चला आया। इसके बाद उसने कुटनी बुढ़ियाके कहे मुताबिक ही सब काम किये। माल खरीदनेवाले व्यापारियोंसे उसने चार लाख रुपये वसूल किये और इतना P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust