Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 429
________________ 404 नीशान्तिनाथ चरित्र। . लेने और बादको जाते समय उसके जहाज़में उसके इच्छानुसार माल भर देनेका वादा करनेकी बात कह सुनायी। यह सुन, वह बोली, “अरे ! इसमें तो तुम्हें नुकसान होगा, फ़ायदा नहीं होगा। उन्होंने पूछा, "क्यों कर नुकसान होगा ?" उसने कहा,-"तुमने इससे कहा है, कि जैसा चाहोगे, वैसा माल तुम्हारे जहाज़में भर देंगे। पर इच्छा अनेक प्रकारकी होती है। यदि वह कहे, कि मेरे जहाज़में मछरोंकी हड्डियां लाकर भर दो, तो तुम क्या करोगे?" यह सुन, वे बड़ेउसमें इतनी अक्ल, कहाँसे आयी ? वह तो अभी भोला भाला क है।" यह सुन, वह कुटनी -"उसे बालक समझकर नित हो रहना ठीक नहीं ; कर कोई-कोई बालक भी बड़े बुद्धिमान्य होने हैं और कोई-कोई बुढ़ापम भी बुद्धिरहित होते हैं। इसके सिवा, देशदेशान्तरमें यह बात मशहूर है, कि यहाँके लोग बड़े धूर्त हैं। इस लिये जो अक्लका पुतला होगा, वही दूर देशसे यहाँ आयेगा। तुम्हारे लाभमें मेरा भी लाभ है; पर मनके मोदक उड़ानेमें मस्त रहना ठीक नहीं।" उसकी यह बात सुन, वे अपने-अपने घर चले गये। इसके बाद वह मोची ( चमार ) आया। दूर ही बैठ कर उसने हँसते हुए कहा,-"अम्मा ! आज इस नगरमें एक परदेशी बनिया आया हुआ है। मैंने उसे दो जोड़े बड़े खूबसूरत जूते दिये हैं। उसने कहा है, कि मैं तुम्हें राजी कर दूंगा। अब मैं तो उसका सर्वस्व लेकर ही सन्तुष्ट हूँगा। इसके बिना मैं राज़ी होनेका नहीं। यही बात मैं तुमसे कहने आया हूँ ; क्योंकि मेरे लाभमें तुम्हारा भी तो हिस्सा है।" यह सुन, बुढ़ियाने कहा, "भाई ! आदमियोंको अपनी हैसियतके मुताबिक ही मनसूबा भी करना चाहिये। असम्भव मनोरथ करना ठीक नहीं। यदि वह बनिया तुमसे राजाके घर पुत्रका जन्म होनेकी बात कह सुनाये, और पूछे, कि तुम राजी हुए या नहीं ? तब तुम क्या कहोगे?" यह सुन, वह भी मुंह लटकाये अपने घर चला गया। इसके बाद यह काना जुआरी पहुँचा, उसने भी उससे अपनी धूर्तताकी बात ..P.P. Ac. Guriratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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