Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 427
________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। rammnamaranaa hamaramanaaaaamannamrmwammmmmmmmmmnaamana AAAA ठीक ही कहा है, कि स्त्रीके हृदयको कोई नहीं जान सकता; पर समद्रके पानी और गंगाकी रेतका प्रमाण भी कोई नहीं कर सकता।" यह सुन, तीसरेने कहा,-"यह तो पूर्वसूरिका सुभाषित बिलकुलही असत्य मालूम होता है। तो भी वृहस्पति और शुक्राचार्य जैसे लोग कदचित् जान भी सकते हैं।" इसके बाद चौथेने कहा, 'अरे! गंगानदी तो दूर है , पर तुम इस समुद्रके जलकी थाह तो इससे लगवाओ। स प्रकार उन धूर्तीने व्यर्थका विवाद कर अपनी धूर्त विद्यासे उसीपुत्रको इस मामलेमें ऐसा उत्साह दिलवाया, कि वह इस का को करनेके लिये राज़ी हो गया है इसके बाद उन्होंने फिर उससे कहा“सेठजी ! अगर तुम यह काम कर दोगे, तो हम अपना सारा धनम् न्ह दे देंगे और यदि नहीं कर सकोगे, तो तुम्हारा सब धन हमलोग ले लेंगे।" यह कह, उन लोगोंने सेठके साथ बाज़ी लगानेके लिये उसके हाथपर हाथ मारा। रत्नचूड़ने भी उसके हाथपर हाथ मारा और आगे बढ़ा। इसके बाद वह सोचने लगा,--"मेरे पिताने जैसा कहा था, इस नगरके लोग ठीक वैसे ही हैं। फिर इन सब कामोंका निबटारा कैसे होगा? अच्छा रहो, पहले मै रणघंटा नामकी घेश्याके घर चलता हूँ; क्योंकि वह बहुतोंका दिल खुश करती और तरह-तरहके फन्द-फ़रेब जानती है; इसलिये वह मुझे कुछ अक्ल ज़ला सिखलायेगी।" यही सोचकर वह वेश्याके घर गया। उसने उठकर उसका स्वागत किया और बड़े आदरके साथ उसे बैठनेके लिये आसन दिया। इसके बाद रत्नचूड़ने काने धूर्तका दिया हुआ धन उसके हवाले कर दिया। इससे वह वेश्या बड़ी प्रसन्न हुई और अभ्यंग, उद्वर्तन, स्नान और भोजन आदिसे उसने उसे खूब सम्मानित किया। इतनेमें सन्ध्या हो गयी। उस समय सेठ उसकी मुलायम सेजपर बैठा और वह वेश्या शृङ्गार रससे भरी, मनोहर और विचक्षण पुरुषोंके योग्य, बातचीत करने लगी। बातों-ही-बातोंमें सेठने उससे अपनी सारी रामकहानी सुनाकर कहा, "हे मनोहर नेत्रोंवाली! तुम इसी नगरकी रहनेवाली P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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