________________ श्रोशान्तिनाथ चरित्र। ही धन समुद्रका जल मापनेकी बाजी लगानेवालोंसे भी लिया। इस मामलेसे वह सेठ सारे शहर में मशहूर हो गया। __एक दिन रत्नचूड़ भेट लिये हुए राजाके पास आया और उन्हें प्रणाम कर, उचित स्थानपर बैठ रहा।. राजाने उससे सारा वृत्तान्त पूछा,--"उसने सब ज्योंका त्यों कह सुनाया। यह सुन कर राजाको बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने सोचा,--"अहा! इस महापुरुषमें तो बड़ा माहात्म्य है। इसने इस नगरके लोगोंसे भी धन वसूल लिया।" यह सोच कर राजाने कहा,-."हे वणिक् पुत्र ! मै तुर बहुत ही प्रसन्न हूँ। कहो, तुम्न कौनसा मनोरथ पूरा करूं ? रत्नचूड़ने कहा, "हे राजादि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं, तो रणघण्टा नामकी वेश्याइ दिलवा दीजिये।" उसकी मांग पूरी हुई। रणघण्टा उसकी स्त्री हो गयी। इसके बाद रत्नचूड़ने उसे बहुतसे गहने गढ़वा कर दे दिये। ... इसके बाद वह सेठका पुत्र बहुतसा लाभ उठा कर, दूसरी तरहका माल जहाज़में लाद कर अपने स्थानको जानेको तैयार हुआ। इसके बाद अपने जहाज़पर सवार हो, क्षेमकुशलसे महासागरको पार कर, कुछ दिनों बाद रणघण्टाके साथ-साथ अपनी नगरीमें आ पहुँचा। उस समय एक आदमीने पहले ही पहुँच कर सेठको बधाई दी, कि तुम्हारा पुत्र बहुतसा धन उपार्जन कर कुशलमङ्गलके साथ घर आ गया।" यह सुन, सेठने उसे उचित इनाम देकर सन्तुष्ट किया और बड़ी धूम-धामके साथ बहुतेरे आदमियोंको लिये हुए अपने पुत्रके पास जा, उसे स्त्री सहित घर ले आया। पुत्रने स्त्रीके साथ-साथ माता-पिताको प्रणाम किया। माता-पिताने शुभाशीर्वाद दे, उसकी प्रशंसा की। इसके बाद पिताके पूछनेपर उसने अपना सारा हाल कह सुनाया। सब कुछ सुनकर उसके पिताको बड़ी प्रसन्नता हुई ; किन्तु उसने बातोंसे पुत्रके गुणोंकी बहुत प्रशंसा नहीं की, क्योंकि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust