________________ 68 4.8 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / इसके बाद सेठके उस पुत्रने विधिपूर्वक अन्य स्त्रियों माथ भी म्याह किया। तथा अपनी भुजाओंके प्रतापसे उपार्जन क लमी. को सफल करनेके निमित्त उस नगरमें बड़ा भारी जिन बनवाया। चिरकाल तक सुखभोग करनेके अनन्तर उसे पुत्र उत्पन्न उसने सद्गुरुसे धर्म श्रवण कर, प्रतिबोध प्राकर, वैराग्यके साथ संयम ग्रहण किया। और उसका त्रिकरण शुद्धि-पूर्वक पालनकर, अन्तमें समाधिमरण द्वारा मृत्युको प्राप्तकर, स्वर्गको गया। वहाँ र. विध प्रकारके सुख भोगते हुए पुनः वहाँसे निकलकर वह क्रमसे - को प्राप्त होगा। इस कथाका उपनकात प्रकार करना-मनुष्य जन्मको सुकुल मानो ; वणिक्-पुत्र को भव्यप्राणियों मानना, उसके पिताके स्थानमें धर्मका बोध करानेवाले हितकारक गुरुको समझना, वेश्याके वचनकी जगह श्रद्धादि द्वारा उत्पन्न उत्साहको समझना ; क्योंकि श्रद्धा भी पुण्य लक्ष्मीकी वृद्धि करने में मदद पहुँचाती है , मूल द्रव्यके स्थानमें गुरुका दिया हुआ चारित्र मानना ; अनीतिपुरमें जानेका जो निषेध किया गया था, उसे गुरुकी 'सारणा-वारणा' (विधि-निषेध) समझना संयमरूपी जहाज़ पर चढ़कर भवसागर पार किया जाता है, ऐसा समझना, नाविकोंकेस्थानमें साधर्मिकों और मुनियोंको समझना भवितध्यताके नियोगके समान प्रमादको जानना ; अनीतिपुरके समान दुष्प्र. वृत्तिका प्रवृत्त होना समझना; अन्यायो राजाके स्थान पर मोहराजाको जानना ; सौदागरी माल खरीदनेवाले चारों धूर्त बनियोंके स्थानमें चार प्रकारके कषायोंको जानना- वे ही विवेकरूपी धनको हड़प कर लेते हैं; वेश्या विषयकी पिपासाको समझना। अम्मा ( कुटनी ) कर्मपरिणित है--वही पूर्व भवमें अच्छा कर्म करनेवालोंको सुमति देती है। उसके प्रभावसे प्रापी समस्त अशुभोंका नाश कर फिर जन्मभूमिके समान धर्ममार्गपर आ जाता है / इसी प्रकार इस कथाका उपनय जिस प्रकार घटित हो सके, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust