Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 435
________________ 410 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / लोगोंके सब उपद्रव शान्त हो जाते थे। प्रभु जिस भूमिमें नि म करते, वहाँसे सौ योजन पर्यन्तके लोगोंको अकाल या महामारी उपद्रवोंसे उद्विग्न होनेकी नौबत नहीं आती थी, तथा पची बाजन तक सब तरहके वृक्षोंमें फल-फूल भर जाते थे। लोग सुखसे निर्भय होकर पृथ्वीमें विहार करते रहते थे। श्रीजिनेश्वरका प्रभा गवश्वके लिये विस्माय कारक होता है, वैसे जिनेश्वरका वर्णन मेरे जैसी अल्प बुद्धिवाला मनुश्य कहाँतक कर सकता है ? जिसके पल्योपमका आयुष्य हो और हरि जिलाएँ हों वही शायद उनके गुणोंका वर्णन कर सके / कहा भी है, "विजानाति जिनेन्द्र र कोनिःशेष गुणोत्करम् / त एव किलानन्ति, दिव्यज्ञानेन तं पुनः // 1 // असितगिरिसभ स्यात्कज्जलं सिन्धुपात्रे, सुरतरुवरशाखा लेखनी पत्र गुर्वी // लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं / / तदषि तव गुणानामीश पारं न याति // 2 // " . अर्थात-"जिनेन्द्रोंके सव गुणोंको कौन जानता है ? वे ही दिव्यज्ञान के द्वारा अपने गुण समूहों को जानते हैं। अंजन-गिरिके बराबर कज्जल सिन्धु-पालमें घोल कर, कल्पवृक्षकी शाखा की कलम बना, पृथ्वीरूपी बड़ेसे कागज पर स्वयं शारदा चिरकाल तक लिखती रहें, तो भी हे ईश ! वह तुम्हारे गुणों के पार नहीं पहुँच सकें।" इसी प्रकार भगवान् श्री शान्तिनाथ जिनेश्वर समस्त भब्य जीवोंके उपकारके लिये पृथ्वीपर विहार कर रहे थे, चक्रायुध गणधर स्वयं जानते हुए भीभव्य जीवोंके प्रतिबोधके निमित्त भगवान्से अनेक प्रकारके प्रश्न किया करते थे और स्वामी उन सबके यथोचित उत्तर दिया करते.थे। ..... .. ... . इस प्रकार :पृथ्वीपर विहार करते हुए श्रीशान्तिनाथ भगवान्ने बासठ हज़ार मुनियोंको दीक्षा दी और इकसठ हज़ार छः सौ शीलवती नाधिक्या बनायीं। श्रीसम्यकत्व सहित श्रावकधर्मको धारण करने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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