Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 428
________________ 403 ... षष्ठ प्रस्ताव। . हो, इसलिये यहाँका हाल तुम्हें बखूबी मालूम है, इसलिये तुम्हीं बत. लाओ, कि मैं इन झगड़ोंका फ़ैसला किस तरहसे करूँ ? इन मामलोंका निपटारा हो जानेपर ही मैं तुम्हारे साथ रंगरसकी बातें कर सकता हूँ। अभी तो मैं बड़ी चिन्तामें हूँ।" यह सुन, वह चतुर पतुरैया बोली,—“हे सुन्दर ! सुनो, यदि कोई व्यापारी दैवयोगसे यहाँ आ-पहुँचता है, तो यहाँके लोग, जो ठग-विद्यामें पूरे उस्ताद हैं, उसे एक पुरगी लूट लेते हैं। इसके बाद वे अपनी लूटके धनका एक भाग राको, दूसरा भाग मन्त्रीको, तीसरा भाग नगरसेठको, चौथा भाग को बालको, पाँचवाँ भाग पुरोहितका 1 छठा भाग मेरी माता यमघी दे जाया करते हैं। सब लोग उयो आकर अपना व्यौरेवार हाल सुना जाया करते हैं। मेरी माता बड़ी बुद्धिमान् है-सवालजवाव करने में बढ़ी होशियार है। सब लोंगोंको वही कपट-विद्या सिखलाया करती है। इसलिये मैं तुम्हें उसीके पास ले चलती हूँ। वहीं तुम भी उसकी बातें सुन लेना।" यह कह, रातके समय, उसकी उदारतासे प्रसन्न बनी हुई वह वेश्या, उसे स्त्रीकी पोशाक पहनाकर, अपनी माके पास ले गयी। वह प्रणाम कर माके पास बैठ रही। माने पूछा-"बेटी! आज यह तेरे साथ कौन आयी है ?" उसने कहा,"माता! यह श्रीदत्त सेठकी पुत्री रूपवती और मेरी प्राणप्रिय सखी है। यह मुझे एक दिन नगरमें मिली थी। उस समय मैंने इससे अपने घर आनेको कहा था ; इसीलिये यह कुछ बहाना करके घरसे बाहर हो, यहाँ मुझसे मिलने आयी है। मैं इसे तुम्हारे पास लेती आयी हूँ।" यह कह, वह वहाँ बैठ रही। इतने में वे चारों बनिये, जिन्होंने रत्न. चूड़का सारा माल ले लिया था, बुढ़ियाके पास आये और उचित स्थान पर बैठ रहे। बढ़ियाने कहा,-"व्यापारियो ! मैंने सुना है, कि आज यहाँ कोई जहाज़ आया है। वे बोले,-"हाँ, स्तम्भतीर्थका एक वणिक्पुत्र यहाँ आया है।" उसने फिर कहा,-"उसके आनेसे तुम्हें कुछ लाभ हुआ या नहीं ?" यह सुन, उन्होंने उससे उसका सारा माल ले P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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