________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। अर्थात्-'गौ, कन्या, शंख, बाजा, दही, फल, फूल, धधकती हुई अग्नि, वाहन, ब्राह्मण-युगल, अशी, हस्ती, वृषभ, पूर्णकुम्भ, ध्वंज, खोदी हुई पृथ्वी, जलचर-युगल, सिद्ध अन्न, शव, वेश्या, स्त्री, मांसका पिण्ड तथा प्रिय और हितकारक वचन--ये सब चीजें यात्रा करीवालोंको जाते समय मिले, तो मंगलकी सूचना देती हैं।' ____ इसके बाद रत्नचूड़ जहाज़पर चढ़ा। उसके आत्मीय-स्वजन से . विदा करके पीछे लौटे। इसके बाद पाल तानकर मांझियोंने जति चलाना शुरू किया। कूपस्तम्भ पर बैठा हुआ आदमी मार्गका . रखते हुए नाविकोंको सूचना दिया करता और वे लोग भी / इच्छाके अनुसार वाञ्छित द्वीपकी ओर जहाजको लिये जाते थे। परन्तु जहाँ पहुँचना था, वहाँ न पहुँचकर वह जहाज़ होनहारके वश घहीं रेतपर चढ़ गया,जहाँ अनीतिपुर नामका नगर था। उस जहाजको आते देखकर उस नगरके लोग बड़े हर्षित हुए और ऊँचेप्रदेश पर चढ़कर उसकी ओर देखने लगे। उस द्वीपको देखकर रत्नचूड़ तथा नाविकों. ने किसीसे पूछा, “यह द्वीप कौनसा है और इस नगरका क्या नाम . है ?" उसने उत्तर दिया, “यह कूट-द्वीप कहलाता है और इस नगरका नाम अनीतिपुर है।" यह सुन, उस सेठके पुत्रने अपने मनमें सोचा,"जिस नगरमें आनेको पिताने मना किया था, दैवयोगसे वही नगर प्राप्त हो गया ; यह अच्छा नहीं हुआ। पर अब क्या करूँ ? शकुन तो अच्छे हुए थे-हवा भी पीठपरकी है और मेरे चित्तमें उत्साह भी भरा हुआ है, इसलिये मेरी तो यही धारणा होती है, कि मुझे यहाँ मनमाना लाभ होगा।" - इसके बाद वह रत्नचूड़ सेठ जहाज़से नीचे उतरा और सानन्द - चित्तसे किनारेपर ही रहने योग्य स्थान देख, वहीं अपने नौकरोंसे सब माल जहाज़से उतरवा मगवाया। राजाके नौकरोंको उसने कर भी दे . दिया। इतने में चार वणिकोंने आकर कुशल-प्रश्नके बाद रत्नचड़से Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.