________________ श्रोशान्तिनाथ चरित्र / ___इस प्रकारकी बातें सुनाकर वह वेश्या अपने घर चली गयी। उसकी बातें सुनकर सेठके लड़केने सोचा,-"अहा ! इस वेश्याने बहुत ही ठीक कहा। मुझे इसकी बातोपर अमल करना चाहिये ; क्योंकि कहा है, कि __ 'बालादपि हितं ग्राह्य--म मेध्यादपि काञ्चनम् / नीचादप्युत्तमा विद्यां, स्त्रीरत्नदुष्कुलादपि // 1 // अर्थात्- 'यदि बालक भी कोई हितकी बात कह दे, तो Salil मान लेना चाहिये / विष्ठामें भी यदि सोना पड़ा हो तो उठा in चाहिये / नीचके पासभी यदि उत्तम विद्या हो, तो उससे ले चाहिये और नीच कुलमें भी यदि स्त्री-रत्न मिले, तो उसे कर लेना उचित है।' इस प्रकार नीतिकी बातें मनमें सोचते हुए वह मुँह मलिन किये हुए घर आया। उसे उदास देख, उसके पिताने पूछा, - "पुत्र ! आज तुम्हारा यह सूखा हुआ चेहरा मुझे साफ़ बतला रहा है, कि तुम्हें किसी बातका सोच पैदा हुआ है। इसलिये तुम बतलाओ, कि तुम्हें किस चीज़की जरूरत है ? तुम्हें जो कुछ चाहिथे, वह बतला दो, मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूँगा, क्योंकि तुम मुझे प्राणोंसे भी बढ़कर प्यारे हो।" यह सुन, तनिक मुस्कुराकर रत्नचूड़ने पितासे कहा, - "हे पिता! यदि आपकी आज्ञा हो, तो मैं द्रव्य उपार्जन करनेके लिये विदेश जानेकी इच्छा करता हूँ। इसलिये आप मुझे जानेकी आज्ञा दीजिये।" यह सुन, सेठ रत्नाकरने कहा,-"बेटा! अपने घरमें धनकी क्या कमी है ? तुम इसीसे अपने सारे मनोरथ पूरे कर सकते हो। और यह भी जान रखो, कि परदेशका क्लेश बड़ा ही कठिन होता है। बड़े ही कठोर मनुष्योंका काम परदेश सेवन करमा है। तुम्हारा शरीर बड़ा ही कोमल है, इसलिये तुम भला कैसे परदेश जा सकोगे ? साथही जो पुरुष इन्द्रियोको वशमें रख सके, स्त्रियोंको देखकर मोहित न हो सके, भिन्न-भिन्न तरहके लोगोंसे ठीक-ठिकाने लाथ बातें कर सके, वही परदेश जा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust