________________ . 366 . श्रीशान्तिनाथ चरित्र / एक बार धर्म नामक राजाने मानस नामक नगर-कोतवालको गुरु पदेश-रूपी द्रव्य देकर अपनी ओर मिला लिया और सेना सहित उस नगरमें प्रवेश किया। इस धर्म राजाके ऋजुता नामकी रानी, सन्तोष नामका प्रधान मन्त्री, सम्यक्त्व नामका माण्डलिक राजा, महावतरूपी सामन्त, अणुव्रत-रूपी पैदल सिपाही, मार्दव नामका गजेन्द्र, पशम आदि योद्धा और सच्चारित्र नामक रथपर आरूढ़ श्रुत नाका सेनापति है। ऐसे धर्मराजाने मोहराजको जीतकर उस नगरसे निकाल बाहर कर दिया। इसके बाद धर्मराजाने अपने सब सैनिकोंको ज्ञा दी,-"इस नगरमें कोई मोहराजाको ज़रा सी भी जगह न मिल धर्मराजाकी ऐसी आशा वर्तमान होते हुए भी यदि कदाचित् को के वश हो जाये, तो उसे कर्म-परिणति फिरसे रास्तेपर ले आती है। जैसे कि अनीतिपुर में गये हुए रत्नचूड़ नामक बनियेको यमघण्टा नामकी वेश्याने बुद्धि देकर विपद्से बचाया था।" यह सुन, श्रीसङ्घने प्रथम गणधरसे पूछा,—“वह रत्नचूड़ कौन था ? उसकी कथा कह सुनाइये।" तब गणधरने नीचे लिखी कथा कह सुनायी - o olso doio 0:00Logo DTDOORIO रत्नचूड़की कथा 15000N:00HOTo coFOTO इसी भरत-क्षेत्रमें समुद्रके किनारे धनाढ्य मनुष्योंसे पूर्णताम्रलिप्ति नामकी नगरी है / उस नगरीमें रत्नाकर नामका एक सदाचारी, लक्ष्मीवान् और मर्यादा-पूर्ण सेठ रहता था। उसकी पत्नीका नाम सरस्वती था / वह अगण्य पुण्य, लावण्य, नैपुण्य और दाक्षिण्यादि गुणोंसे विभूषित था / एक दिन सरस्वतीने रातके पिछले पहर स्त्र प्रमें महातेजस्वी - और अँधेरे में उजाला करने वाला एक रत्न अपने हाथमें आया हुआ देखा / सोकर उठनेपर उसने यह बात अपने पतिसे कही। स्त्रीकी यह बात सुन, पतिने कहा, - "प्रिये ! इस स्घनके प्रभाघसे तुम्हें पुत्ररत्नकी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust