________________ षष्ठ प्रस्ताव। 365 भगवान आसनसे उठकर खड़े हो गये। इधर इन्द्र सुगन्धित वस्तुओंसे ( वासक्षेपसे ) भरा हुआ थाल लिये जिनेन्द्रके पास आ खड़े हुए। इसके बाद भगवान्ने श्रीसंघको उसमेंसे वासक्षेप लेकर दिया। छत्तीसों मुनियोंने तीन बार भगवान्की प्रदक्षिणा की। इसके बाद उनके मस्तक पर श्रीसंघ तथा भगवानने वासक्षेप डाला। प्रभुने गणधरके पदमिर स्थापित किया। इसके बाद भगवान्ने बहुतेरे पुरुषों और स्त्रियों को अक्षा दी, जिससे स्वामीको साधु-साध्वियोंका बहुत बड़ा परिवाई प्राप्त हो गया। जो लोग नतिधर्म का पालन करनेमें असमर्थ थे, उन्धीवक-श्राविकाओंने जिनेन्द्रके निकट श्रावकोंके बारह व्रत ग्रहण कि इस प्रकार पहले समवसरणमें चार प्रकारके संघ उत्पन्न हुए। माइली पोरशी पूर्ण होने पर श्रीजिनेश्वर उठ खड़े हुए और दूसरे प्राकारमें बने हुए देवच्छन्दमें विश्राम करने गये। उस समय श्री जिनेन्द्रके पादपीठ पर बैठकर प्रथम गणधर चक्रायुधने दूसरी पोरशीमें सभाके समक्ष व्याख्यान दिया। उस व्याख्यानमें उन्होंने जिन धर्ममें स्थिरताके निमित्त श्रीसंघको पापका नाश करनेवाली अन्तरङ्ग-कथा इस प्रकार कह सुनायी,-.. "हे भव्यजीवो! यह मनुष्यलोक नामका क्षेत्र है। इसमें शरीर नामका नगर है। इसमें मोह नामक राजा स्वेच्छा-पूर्वक विलास करता है। इस राजाकी पत्नीका नाम माया है। इनके पुत्र का नाम अनङ्ग है। इस राजाके प्रधान मन्त्रीका नाम लोभ है। सब वीरों में शिरोमणि क्रोध नामका महायोधा उस मोह राजाके पासमें रहता है। राग और द्वेष नामके दो अतिरथी योद्धा है। मिष्यात्व नामका माण्ड लीक राजा है। मान नामका बड़ा भारी हाथी इस मोहराजाकी सवारीमें रहता है। इस राजाके इन्द्रिय-रूपी अश्वों पर चढ़नेवाले विषय नामके सेवक हैं। इसी प्रकार उस राजाके बहुत बड़ी फ़ौज है। उस नगरमें कर्म नामका किसान रहता है। प्राण नामका एक बहुतः . बड़ा व्यापारी है। मानस नामका तलारक्षक (कोतवाल) है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust