Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 348
________________ षष्ठम प्रस्ताव। जैसा चोर तो शायद ही दूसरा कोई होगा। और-और चोर तो लुकेछिपे चोरी करते हैं, पर यह तो चौड़े मैदान पराया माल हड़प कर जाता है।" यह सुन, क्रोधित होकर राजाने सोचा,-"जिनदत्तको तो लोग बड़ा ही अच्छा आदमी बतलाते हैं , पर इसके कहनेसे तो पता चलता है, कि वह सजन नहीं है। अतएव यदि वह सचमुच दुष्टात्मा है, तो राजाकी ओरसे उसे फाँसीका हुक्म सुनाया जाना चाहिये। ऐसा विचार कर, राजाने वसुदत्तको हुक्म दिया,-"कोतवाल ! यदि जिनदत्त चोर है, तो तुम उसे जला-जलाकर मार डालो।" राजाका ऐसा हुक्म होते ही हर्षित चित्तसे वसुदत्तने जिनदत्त की गिरफ्तार कर लिया और उसे गधेपर चढ़ा उसके सारे शरीरपर रक्तचन्दनका लेपकर, ढोल आदि बजवाते हुए उसे तिराहे-चौराहेकी राह खूब घुमवाया। यह देख, जहाँ-तहाँ लोग 'हा हा'-शब्द करने लगे। क्रमसे वह राज. मार्गमें लाया गया। इतने में शोरगुल सुनकर जिनमती पासवाले घरसे बाहर निकल आयी और जिनदत्तको दुःख देनेवाले सरकारी अफ़सरको देखा / उस समय उस बालाने रोते-रोते अपने मनमें विचार किया,"अहा ! यह जिनदत्त धर्मात्मा, दयालु और देव-गुरुकी भक्तिमें तत्पर है, तथापि यह निरपराध होते हुए भी ऐसी दुःखदायिनी दशाको क्यों प्राप्त हुआ ?" इतने में जिनदत्तने भी उसे अपनी ओर देखते देख लिया और उसके प्रति अनुरागवान् होकर अपने मनमें विचार किया,-"अहा! इसकी मेरे ऊपर कैसी अकृतृम प्रीति है! मेरा दुःख देखकर यह भी बड़ी दुःखित मालूम पड़ती हैं। अतएव अबके यदि मैं इस सङ्कटसे उद्धार पा गया, तो इसे अवश्य ही स्वीकार करूँगा और कुछ दिनों तक इसके साथ सुख भोग करूँगा, नहीं तो आजसे ही मेरा सागारिक अनशन होगा।" वह यही सोच रहा था, कि कोतवालके निर्दय मनुष्य उसे बधस्थानकी ओर ले आये। ___ इधर प्रिय मित्रकी पुत्री जिनमतीने हाथ-पैर धो, घरके मन्दिरमें जा, प्रतिमाके पास बैठ, शासन देवताका मन-ही-मन चिन्तन करते हुए, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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