________________ षष्ठ प्रस्ताव। . . लोकमें जा देवता हुआ। उस समय घनी अँधियारीके मारे कुछ नहीं नज़र आने पर भी उसे बातका जवाब देते नहीं देखकर सुलसने यह जान लिया, कि वह मर गया और शोकातुर हो कर गाढ़ स्वरसे रोदन करने लगा, "हे जिनशेखर श्राद्ध ! हा धर्मबन्धु ! हा धर्मगुणके स्थान ! मुझ दुखियाको छोड़ कर तुम कहाँ चले गये ? तुम तो आराधनारूपी रस्सीको पकड़ कर इस संसार कूपसे बाहर हो स्वर्गमें चले गये और मैं रसकूपमें पड़ा-पड़ा केवल इसी विचारमें पड़ा हुआ हूँ।" आया। वह ज्योंही रस-पान कर पीछेलौटने लगा, त्योंही सुलसने बड़ी मेज़बूतीसे उसकी पूंछ पकड़ ली। इसके बाद बड़े कष्टसे कहीं सो कर, कहीं बैठ कर, कहीं शरीर सिकोड़ कर, कहीं शरीर घसीटते हुए, वह उस साँड़की पूँछ पकड़े बाहर निकला / बाहर आते ही सूर्यका प्रकाश और गिरि-गुफा आदिको देखकर उसने उस साँड़की पूंछ / इसके बाद सुलस एक ओर चल पड़ा। इसी समय जंगली हाथियोंने उसे देखा और उसकी ओर दौड़े। उसी समय सुलसने अपने मनमें सोचा,-"मैं तो एक दुःखसे उद्धार भी नहीं पाने पाता, कि दूसरा दुःख प्राप्त हो जाता है / अब मैं क्या करूँ ? और कहाँ जाऊँ ?" ऐसा विचार कर वह ज्योंही भयके मारे भागा चाहता था, त्योंही एक हाथीने क्रोधके मारे उसे सूंड़से पकड़ कर आसमानमें उछाल दिया। दैवयोगसे आसमानसे गिरते समय वह एक वृक्ष पर गिर डा। वह उसकी शाखा पकड़े हुए वहीं लटका रहा। हाथी भी पुत्रान पहुँच कर क्रोधके मारे उसे मारने लगा। इतनेमें एक सिंहने उस हाथीको मार डाला। उसी हाथीको खानेके लिये एक हुँचा। एक भक्ष्यके लिये दो खानेवाले तैयार हो गये, बस बाघमें परस्पर युद्ध होने लगा। युद्ध करते-करते रात हो गयी। इसी वक्षकी एक शाखामें सुलसने प्रकाश Jun Gun Aaradhak Trust