________________ षष्ठ प्रस्ताव / 371 पैरोंमें चक्र, स्वस्तिक और मत्स्य आदि शुभलक्षण देखकर, उन्होंने सोचा,—“यह तो कोई बड़ाही महापुरुष मालूम होता है / इसके प्रभावसे वृक्षकी छाया भी नहीं हटती। यह अपने पुण्योंके प्रतापसे आपसे आप राजा हो गया / " वे सब सामन्त ऐसा विचार कर ही रहे थे, कि इसी समय शूरपालकी नींद टूट गयी और वह सोचने लगा, कि यह मामला क्या है ? इसी समय प्रधान पुरुषोंने उसे बड़े आग्रहसे आसन पर बैठाकर स्नान तथा विलेपन कराया और वस्त्राभूषणोंसे उसका शृङ्गार कर, अच्छेसे हाथीपर बैठाया। उसके माथेपर छत्र लगाया गया और दोनों ओर चँवर दुलने लगे। इस प्रकार बड़े ठाट-बाटके साथ उन लोगोंने राजाका नगर-प्रवेश कराया। उसे देखकर नगरकी या उसकी प्रार्थना करने लगीं। इस प्रकार भांति-भांतिके मङ्गलो. अनुभव करते हुए राजा शूरपाल राजमन्दिर में प्रवेश कर राजसभामें सा बैठा। मंत्रियों और राजसामन्तोंने आकर उसे प्रणाम किया। क्रमसे सारे नगरमें शूरपाल राजाका नाम फैल गया। एक दिन उसने अपने जीमें सोचा,-"मैंने जो यह राजलक्ष्मी पायी, उसका क्या फल हुआ ? कहा है, कि परदेशमें प्राप्त लक्ष्मीका कोई फल नहीं, क्योंकि उसे न तो शत्रु देखकर जलते हैं और न मित्र उसका उपयोग कर सकते हैं। इसलिये इस ढंगसे पायी हुई यह लक्ष्मी अच्छी नहीं है; क्योंकि अभीतक मेरी स्त्रीकी भी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। . ऐसा विचार कर उसने अपने हाथसे पत्र लिखकर अपने परिवार बालोंको यहाँ बुला लानेके निमित्त अपने सेवकोंको अपने घर भेजा। वे काञ्चनपुर पहुंचे सही, पर बहुत खोलनेपर भी उसके परिवार वाले उन्हें नहीं मिले। इसी समय किसीने उन राजकर्मचारियोंके पास आकर कहा,"हे भाइयो! यहाँ वृष्टि नहीं होनेसे अकाल पड़ा हुआ है, इसीलिये महीपालके खेतोंकी सारी फ़सल मारी गयी। खेतीके सिवा जीविका-निर्वाहका और कोई साधन नहीं होनेके कारण दुःखी होकर महीपाल यहाँसे कहीं और चला गया है, किन्तु कहाँ गया है, यह हम Facts P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust