________________ * 376 - श्रीशान्तिनाथ चरित्र। आप पृथ्वीके पालक हैं और अन्यायका निवारण करते हैं। जो दुर्जन होते हैं, वेही सतियोंके शीलका खण्डन करने को तैयार होते है। पर आपके सदृश मनुष्योंको तो ऐसा कदापि नहीं करना चाहिये / वदि , आप भी ऐसा नहीं करने योग्य कार्य करने लगेंगे, तब तो 'जोही रक्षक, सोही भक्षक' वाली कहावत सच हो जायेगी। शास्त्र में कहा हुआ है, कि जो निर्लज पुरुष परस्त्रीका सेवन करता है, वह अपने कुल, राक्रम और चरित्रको कलङ्कित करता है। सारी दुनियाँमें उसकी बदनामीका नक्कारा बज जाता है।" और उसका महामूल्यवान शीलरत्न धूलमें मिल जाता है। जब उसने ऐसा कहा, तब उसके पास रहनेवाले राजपुरुषोंने उससे कहा,-“हे भद्र ! जिन हमारे स्वामीकी अन्ना स्वयं प्रार्थना करती हैं, वे जब स्वयं ही तुम्हारी प्रार्थनाकर रहे तुम उनकी उपेक्षा क्यों कर रही हो?" यह सुन, शीलमती बोली, शरीरका स्पर्श या तो मेरे स्वामी करेंगे अथवा अग्नि ही करेगी। मेरे जमा जी इसके कोई पर पुरुष हाथ नहीं लगा सकता।” इसके बाद राजा उसके मनमें प्रतीति लानेके लिये, उसको कुछ सङ्केतकी बातें कहीं, इसके बाद फिर कहा,–“हे मुग्धे! तुम मेरे सामने आँखें बराबर करकेदेखो और। मुझे पहचानो। मैं काश्चनपुरसे भागकर यहीं चला आया था। उसी समय यहाँके राजा अपुत्रक अवस्थामेंही मरगये थे, इसलिये पंचदिव्यमे मुझेही/ राजा बनाया। मैं वही तुम्हारा पति शूरपाळ हूँ।" राजाकी यह बात सुन, उसकी बातें विश्वास करने योग्य समझ,सङ्केत वाक्योंका मनमें विचार कर विस्मित होती हुई उसने अपने स्वामीके सामने देखकर उन्हें पहच लिया। उस समय शीलमती हर्षसे वैसीही खिल उठो, जैसे मेघको देखकर / मयूरी हर्षित हो जाती है / इसके बाद राजाके हुक्मसे दासियोंने उसे तेलउबटन लगाकर नहला दिया, सब अंगोंपर कुङ्कमका लेप कर दिया, राजाका दिया हुआ रेशमी वस्त्र पहना दिया और तिलक आदि चौदह प्रकारके शृङ्गारोंसे उसके शरीरका शृङ्गार-सम्पादन कर दिया। इसके बाद दासियाँ शीलमतीको राजाके पास ले आयीं। इसके बाद राजाने उसे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust