Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 404
________________ षष्ठ प्रस्ताव / हैं, यह मेरी माता और ये मेरीभाभियाँ हैं / ये लोग मेरे पूज्य हैं, इसलिये तुम लोग इन्हें प्रणाम करो।" यह सुन, आनन्दित होकर सब सामन्त आदिने उन्हें नमस्कार किया, तब शूरपाल राजाने अपने भाइयोंको अलग-अलग देश देकर उन्हें माण्डलिक राजा बना दिया। कहा है, "नापकृतं नोपकृतं न सत्कृतं किं कृतं तेन / - प्राप्य चलानधिकारान् शत्रुषु मित्रेषु बन्धुवर्गेपु // 1 // " अर्थात्-"चंचल राज्यादि अधिकार पाकर जिसने शत्रुओं का आपने नहीं किया, मित्रोंका उपकार नहीं किया और बन्धुओंका स नहीं किया, तो क्या किया ? कुछ भी नहीं किया / " मनापाल राजाने अपने माता-पिताको अपने पास ही रखा और कि आत्माको कृतार्थ मानते हुए अपने राज्यका पालन करने लगे। प दिन उस नगरके बाहर वाले उद्यानमें श्रीश्रुतसागर नामके सूरिका. रामवसरण हुआ। उस समय उनके चरणोंको नमस्कार करनेके लिये नगरके लोगोंको जाते देखकर शूरपाल राजाने मंत्रीसे पूछा, "हे मंत्री! ये लोग कहाँ चले जा रहे हैं ?" इसके उत्तरमें मंत्रीने राजाको सूरिके आगमनका समाचार कह सुनाया / यह सुन; राजाने कहा,-"जव इस. नगरके लोग ज्ञानके सूर्यके समान गुरुको नमस्कार करनेके लिये जा रहे हैं, तब मुझे भी जाना चाहिये / " मंत्रीने कहा, "हे स्वामी ! यह चार बहुत ही उचित है।" वस तुरतही राजा, माता-पिता और प्रियाके साथ उद्यानमें आ, सूरिको प्रणाम कर, उनके पास ही उचित स्थानपर बैठ रहे। उस समय सूरिने राजाको संसार-समुद्रके पार उतारनेमें नौकाके समान श्री सर्वज्ञ-भाषित जिनधर्मकी देशना कह सुनायी। उसे सुन, प्रतिबोध प्राप्त कर, राजाने गुरुके सामने ही श्रावक धर्म अङ्गीकार किया और उन्हें प्रणाम कर घर चले आये। इसके बाद राजा शूरपाल प्रतिदिन सूरिको प्रणाम करने आते और धर्म सुन जाया करते। एक दिन अवसर पाकर राजाने गुरुसे पूछा,--"हे. - Jun Gun Aaradhak Trust

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