________________ 360 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / .:.- " - - यह आदेश सुन, मन्त्री, सामन्त आदि पुरवासी बड़े सन्तुष्ट हुए और नगरके बाहर आये। वहाँ उन्होंने अपने ही नगरके रहनेवाले व्याघ्रको देखा। इसके बाद बड़ी धूम-धामके साथ उसे हाथी पर बैठाकर मन्त्री-सामन्त आदिने उसे पुर-प्रवेश कराया। उस समय तक इस नगरमें पहलेसे क्या क्या हो चुका था वह भी सुनो "व्याघ्रकी स्त्री उसी बनियेकी दूकानसे बराबर आटा-चावल लेती रहती थी, इसलिये धीरे-धीरे उस पर बनियेंका बहुतसा लह हो गया, इस कारण और बहुत दिनोंसे व्याघ्र का कोई समाचाही मिला था, इसलिये भी-उस बनियेने व्याघ्र की स्त्रीको बालको त पकड़कर उस नगरके कोतवालके घर बन्धक रख दिया था। यचार सुन कर व्याघ्रने उस बनियेका लहना कोड़ी-कौड़ी चुका या और वस्त्रों सहित अपनी स्त्रोको छुड़वाकर राजमहलमें बुला लिया / . इसके बाद व्याघ्र भी राजमन्दिर में आया। मन्त्री, सामन्त आदि सब : लोगोंने उसे प्रणाम किया। इसके बाद व्याघ्र राजाने सबके सामनेही अपनी महा आश्चर्यदायिनी कथा कह सुनायी। इसके बाद राजाने / अपनी स्त्री और बच्चोंको अच्छे-अच्छे वस्त्रालङ्कार देकर खूब खुश किया / इस प्रकार सत्पात्रको दान देनेका प्रत्यक्ष और तत्कालिक फल देखकर राजा निरन्तर सुपात्रोंको दान देने लगे। कहा भी है, कि "जले तैलं खले गुह्यं, पात्रे दानं मनागपि / प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं यान्ति, विस्तारंवस्तुशक्तितः // 1 // " . अर्थात् “जलमें तेल, खलमें गुप्त बात, पात्रमें दान, बुद्धिमानमें शास्त्र-इतनी वस्तुएँ अपनी शक्तिके अनुसार आपसे आप विस्तारको प्राप्त होती हैं / अब अपने दुःखोंको याद कर, व्याघ्रराजा सब प्राणियोंपर मैत्रीभाव रखने लगे और कृपा पूर्वक जिसका जहाँतक उपकार बन पड़ता, . वहाँतक उपकार करने लगे। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust