Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 416
________________ m षष्ठ प्रस्ताव। nmmmmverwarmoram namammanamamman एक दिन उस नगरमें ज्ञानगुप्त नामके सूरि आ पहुँचे, उनके चरणों-. में प्रणाम करनेके लिये व्याघ्र राजा भी वहाँ गये और उन्हें प्रणामकर ... उचित स्थान पर बैठ रहे। सूरिने उन्हें प्रतिबोध देनेवाली धर्मदेशना सुनायी। उसे सुनकर, उन्होंने कहा, "पूज्यवर ! धर्मका फल तो हाथो हाथ मिला। दानके प्रभावसे मुझे इसी भवमें राज्यकी प्राप्ति हुई। परन्तु यह तो कहिये, पूर्व भवमें मैंने कौनसा पाप किया था, जिस कारण मुझे पहले केवल दुःख-ही-दु:ख प्राप्त होता गया ?" यह सुन माती गुरूने कहा, "हे राजन! सुनो- - व समयमें एक पहाड़ी प्रदेशमें दुर्गासिंह नामक पल्ली-पति (गांव. कारी ) रहता था। यद्यपि सभी भील परद्रव्यको हरण करने वाते हैं, तथापि कितनोंके परिणाम अच्छे भी होते हैं और विहाक बुरे / एक दिन भील कहीं छापा मारने गये। वहाँ उनमेंसे एकने कहा,-"अपने सामने जो कोई दुपाया-चौपाया मिले, उसे वेधड़क मारते चलो।" दूसरेने कहा, "भाई जानवरोंको मारनेसे क्या लाभ ? मनुष्योंमें स्त्री-पुरुषका भेद न करके सबको मार डालो ; क्योंकि बस्तियों में इन्हीं लोगोंका भय रहता है।" तीसरेने कहा,-"स्त्रियोंके मारनेसे क्या लाभ है ? केवल पुरुषोंको ही मारना चाहिये। चौथेने कहा,--"पुरुषों में भी जो शस्त्रधारी हों, उन्हें ही मारना चाहिथे, शस्त्र हीनोंको मारनेका क्या काम है ?" पाँचवेने कहा,-"शस्त्रधारियोंमें भी जो अपने सामने युद्ध करने आयें, उन्हें ही मारना चाहिये, औरोंको मारनेका क्या काम ?" अन्तमें छठा भील बोला,-"किसीको मारना नहीं। अपनेको तो केवल धनसे काम है, इसलिये धन लेकर ही चल देना चाहिये।” इनमें पहलेको कृष्णलेश्यावाला, दूसरेको नीललेश्यावाला, तीसरेको कपोतलेश्यावाला, चौथेको तेजोलेश्यावाला, पाँचवेंको पद्मलेश्यावाला और छठेको शुकलेश्यावाला समझना। इनमें पहले तीन तो अवश्य ही नरकमें जाते हैं और शेषमें तीनों क्रमले उत्तम गतिको प्राप्त होते हैं। जिस दुर्गासिंह नामक भीलोंके चौधरीका ऊपर P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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