________________ ___पष्ठ प्रस्ताव / 385 "इसके अतिरिक्त खेती करनेमें घरवालोंसे बिछुड़नेका भी डर नहीं रहता। यद्यपि योंही खाली हाथ घर लौटना बड़ी शर्मकी बात है, तथापि व्यर्थ यहाँ रहना किस कामका ?" ऐसा विचार कर वह उस स्थानसे चल निकला और बिना खर्च-बर्चके ही रास्ता ते करता हुआ रातके समय अपने घर आया तथा घरके वाहरवाली भीतसे उढ़क कर खड़ा हो रहा / इतने में उसने अपनी स्त्रीको, अपने बालकोंको, जो सुंदर पदा खानेको मांग रहे थे, यह जवाब देते हुए सुना, -“पुत्रो! तुम्हारे पिता जाकी सेवा कर, बहुतसा धन कमा लायेंगे। तब मैं तुम्हें तुम्हारे इचवतार भोजन दूंगी। तुम्हारे पिता बड़े अच्छे-अच्छे वस्त्र लायेंगे गहने गढ़ा देंगे-सब कुछ अच्छा हो जायेगा ; इसलिये तुम . रोति / " यह सुन, व्याघ्रने सोचा,-"अहा ! मेरी स्त्रीके हृदय में तोड़ी-बड़ी आशाएँ हैं ! ऐसी हालत में जब वह मुझे यों फटे हाल अंधा हुआ देखेगी, तो उसकी छाती फट जायेगी और वह मर जायेगी। इसलिये चाहे जितने दिन बीत जायें ; पर मुझे धन लेकर ही घर आना चाहिये, नहीं तो नहीं।” ऐसा निश्चय कर वह पीछे लौटा और बिना .. किसीको कानोंकान अपने आनेकी खबर दिये चला गया। उस समय, वह अपने मनमें विचार करने लगा, "निर्मितोऽसि नरः किं त्वं, विलीनोऽम्बोदरे न किम् / जीव रे निर्धनावस्था, जाता यस्ये दृशी तव // 1 // नार्जिता कमला नैव, चक्रे भर्तव्य पोषणम् / दत्तं च.येन नो दानं, तस्य जन्म निरर्थकम् // 2 // " . अर्थात्---'"रे जीव! तू पुरुष काहेको हुआ ? माके गर्भ में ही मर क्यों न गया, जो तेरी. ऐसी दरिद्रावस्था हुई ? जिसने धन नहीं कमाया, जिनका पालन-पोषण करना चाहिये, उन्हें नहीं पाला-पोसा ; . दीन-दुःखियों को दान नहीं दिया, उसका जन्म व्यर्थ ही गया। . ऐसा विचार कर, चित्तमें दृढ़ता और साहसको धारण कर वह वह उत्तम रत्तों की प्राशिक निमित्त रोहणाचल-पर्वतकी ओर चला गया। Jun Gun Aaradhak Trust