________________ श्रोशान्तिनाथ चरित्र। . अस्त्र-शस्त्र भी बच खाये-पास-पल्ले भी जो कुछ दाम-दमड़ा था, वह भी उड़ गया। उसने एक वर्ष तक बिना वेतनके राजाकी सेवा की, पर उसने राजासे कुछ भी लाभ नहीं उठाया। तब उसने बड़े अफ़सोसमें पड़कर सोचा,-"राजाने पहले तो बड़ी उदारता भरी बातें की; पर अब तो मालूम होता है, कि वे निरी थोथी बातें थीं। कहा भी है, कि असारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान् / नहि तादृग् ध्वनिः स्वर्ग, यादृशः कांस्य भाजने // 1 // " अर्थात्--"अकसर देखा जाता है, कि जिसके भीतर कुछ नहीं होता, उसका उपरसे बड़ा भारी आडम्बर होता है, पर बर्तनसे ऐसी ध्वनि निकलती है, वैसी सोनेसे नहीं निकलती / "कितने ही मनुष्य बातें बोलनेमेही बहादुर होते हैं : काम कर नहीं। शास्त्रमें कहा है, कि "अदातरि समृद्वोऽपि, किं कुर्वन्त्युपजीविनः / किंशुके किं शुकः कुर्यात्, फलितेऽपि बुभुक्षितः // 1 // " __अर्थात्-समृद्धिशाली हो; पर दाता न हो, तो उसके सेवक * क्या करें ? ( सेवकों का दुःख-दारिद्रय कैसे दूर हो ? ) फले हुए किंशुकके वृक्षको लेकर भूखा तोता क्या करे ? ( उससे तोतेकी भूख थोडेही मिटने की है ? )" ऐसा विचारकर उसने फिर सोचा,-"इस कृपण राजाकी सेवासे तो मेरी खेती ही अच्छी है। कहा भी है, कि-. "ल्क्ष्मी वसति वाणिज्ये, किंचित्किचिच्च कर्षणे / अस्ति नास्ति च सेवायां, भिक्षायां न च नैव च // 1 // " अर्थात् "लक्ष्मी व्यापारमें ही रहती है। थोड़ी-थोडी खेती बारीमें भी रहती है / सेवासे लक्ष्मी होती है और नहीं भी होती / परन्तु भिक्षासे तो हरगिज होही नहीं सकती। P.P..AC. Gunratnasuri M.S. -~~Jun Gun Aaradhak Trust .