Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 406
________________ षष्ट प्रस्ताव। 381 विविध प्रकारके दान दे, चिरकाल पर्यंन्त समकित सहित श्राद्ध धर्मका प्रतिपालन किया / अन्तमें आशन अङ्गोकार कर,आराधना द्वारा आत्माको निर्मलकर शुभध्यानसे मरण प्राप्तकर, वे दोनों ईशान देवलोकमें जाकर देव हुए। वहाँ देवका आयुष्य पूर्णकर, वीरदेवका जीवही वहाँसे च्युत होकर, इस समय शूरपाल राजाके रूपमें अवतीर्ण हुआ है और सुव्रताका ही नीव च्युत हो, तुम्हारी प्रिया शुभ्र मनोरथा शीलमतीके रूपमें अवतीर्ण हुआ है। हे राजन् ! तुमने पूर्व भवमें जो सत्पात्रको दान दिया था, उस प्रभावसे तुम्हें विना मिहनतके ही राज्य मिल गया।" पूवीत प्रकार अपने पूर्व भवका वृत्तान्त श्रवण कर, रानी सहित र जातिस्मरण हुआ, जिससे उन्हें अपना पूर्व भव प्रत्यक्षकी दीखने लगा और उन्होंने वैराग्य प्राप्त कर, चन्द्रपाल नामक to पुत्रको गद्दीपर बैठा दिया और प्रिया सहित उन्हीं गुरुसे दीक्षा ले / इसके बाद अतिचार-रहित उसका पालन करते हुए विविधप्रकाका तप करते हुए केवल-ज्ञानको प्राप्त कर, वे मोक्षको प्राप्त हो गये अतिथि-संविभागपर शूरपाल-कथासम,प्त प्रभु कहते हैं,- "हे चक्रायुध ! दानके विषयमें एक और कथा में है। उसे भी सुनो सुपात्रदानजाद्धर्मा-दिह लौकेपि मानः / अभीष्टार्थमवप्नोति, व्याघ्रः कौटुम्बिको यथा // 1 // ___अर्थात्--"सुपात्रको किये हुए दानसे जो धर्म होता है. उससे मनुष्य इस लोकमें भी व्याघ्र कौटुबिककी भाँति अभष्टि अर्थको प्राप्त करता है।" . . .. 4. व्याघ्र कौटुम्बिककी कथा। मैं इसी भरतक्षेत्रमें पारिभद्र नामक नगर है। उसमें कभी व्यध्र ना. मका एक क्षत्रिय रहता था। वह सेवा-बृत्तिका त्याग कर खेती Jun Gun Aaradhak Trust

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