________________ 374 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / दारोंसे कहा,-"थे नवो आदमी कैसा काम करते हैं और तुम उन लोगोंको क्या देखे हो ?" सरदारोंने कहा,– “हे स्वामी ! ये काम तो अच्छा करते हैं और हर एक मजदूरको प्रतिदिन एक-एक रुपया तथा मध्यम श्रेणीके अन्नका भोजन देनेकी आज्ञा दी गयी है / " यह सुन, राजाने फिर कहा,-"ये नवो आदमी अच्छा काम करते हैं, इसलिये इन्हें कुछ अधिक मज़दूरी देनी चाहिये; क्योंकि नीतिमें कहा है कि सजन और दुर्जन दोनोंपर स्वामीकी समान दृष्टि होनेसे सजनोंका उत्साह भङ्ग हो जाता है उनका दिल बढ़ने नहीं पाता, इसलिये अबसे इत नवो आदमियोंको अधिक मज़दूरी तथा उत्तम अनाज खानेके लिये दिया करना। राजाने जब ऐसा कहा, तब उन सरदार उन लोगोंको बुलाकर कहा,– “हे भाइयो! हमारे स्वामीकी तुम .16 पर बड़ी कृपा हुई है / आजसे तुम लोगोंको अधिक मज़दूरी और म भोजन मिला करेगा / यह सुन, महीपाल आदिने कहा,– “यह स . रकी हमारे ऊपर बड़ी भारी कृपा है / " इसके बाद राजाने महीपा से पूछा,-"क्या तुम्हारे एक पुत्रके दो बहुएँ हैं ? क्योंकि तीन पुत्र और चार बहुएं मालूम पड़ती हैं / इसका क्या कारण है ?" यह सुन, मही, पालने राजासे अपने छोटे पुत्रके प्रवासकी बात कह सुनायी राजाने पूछा,-"तुम लोग यहाँ कहाँसे आये हो ?" उसने कहा, "हे स्वामी हम यहाँ काश्चनपुरसे आये हैं।" राजाने कहा, "हे कौटुम्बिक ! लोगोंको दही-छांछ खाने की आदत होगी। इसलिये सदा अपनी छोटी बहूको दही-छाँछ लेनेके लिये राजमन्दिरमें भेज दिया कर यह कह, राजा शहरमें चले गये। इसके बाद सब लोगोंने यह / र्यकी चात देख, कहा, "अहा ! हमारे स्वामी कभी किसीसे बात नहीं करते, तो भी इन्होंने इनके साथ इतनी देरतक बातें कीं, इसलिये इनका / बड़ा भाग्य समझना चाहिये।" . इसके बाद ससुरके आज्ञानुसार शीलमती राआके घर छांछ लेने -आयो.' उस समय प्रतिहारीने आकर राजासे कहा, "हे स्वामो ! एक P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust