Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 398
________________ . षष्ठ प्रस्तावे। 373 और कुटुम्बको उद्विग्न करनेवाली बहू किसोका कहा नहीं मानती।" इस प्रकार कहकर वह उसका तिरस्कार करने लगा, परन्तु तो भी उसके तिरस्कारको सहन करती हुई, मुँहसे एक अक्षर भी नहीं बोलती हुई वह अपनी मनचीती बात करती जाती थी। इस प्रकार अपने पतिकी आज्ञा पालन करती हुई वह शीलमती भी अपने ससुर आहिके साथ ही उस नगरमें आ पहुँची।। __ इधर शूरपाल राजाने सब लोगोंकी भलाईके लिये अपने नगरमें एक तालाव खुदवाना आरम्भ किया था। वहाँ बहुतेरे निधेन काम करते थे। यह देख, महीपाल भी अपने परिवारके साथ-साथ वहीं क रने लगा। एक दिन सब लोगोंने राजाके पास जाकर कहा, मी ! कृपा कर एक दिन आप तालावका काम देखने चलिये।" यन, लोगोंका बड़ा आग्रह देख, राजा हाथीपर सवार हो, सारी संसभके साथ सरोवर देखनेको आये। वहाँ सब काम करनेवालोंको ते-देखते राजाने एक जगह अपने पिता महिपालको भी सपरिवार खा। साथ ही विरहके कारण दुर्बल बनी हुई और परपुरुषके सामने भी न देखनेवाली अपनी स्त्री शीलमतीको भी देखा / उस समय राजाने सोचा,-"अहा ! दैवयोगसे मेरे परिवारवालोंको इस तरह मजदूरी करनेकी नौबत आ पहुँची है। अवश्य ही यह पूर्व कर्मों का विपाक है। या है, कि___ हरि हरि सुशिरांसि यानि रेजु-हरि हरि तानि लुठन्ति गृध्रपादैः / इह खलु विपमः पुराकृतानां, भवति हिं जन्तुपु कर्मणां विपाकः।।१।।" मोलर अर्थात्--"हरि हरि ! जो मस्तक मुकुट आदिसे अत्यन्त सुशोभित हो रहे थे, वे ही आज गिध आदि पक्षियों के पैरोंपर लोट रहे हैं। यह अवश्यही प्राणियों के पूर्ववत कर्मों का विषम विपाक है और कुछ नहीं।" इस प्रकार कर्म-विपाकको विधेचना कर, ये राजा अन्य सब मज़दौंको देख-भालकर अपने कुटुम्बियोंकी ओर इशारा कर अपने सर. : P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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