Book Title: Shantinath Charitra Hindi
Author(s): Bhavchandrasuri
Publisher: Kashinath Jain

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Page 397
________________ mammmmmmmm 372 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। लोगोंको नहीं मालूम / " यह सुन,वे राजकर्मचारी लौट आये और राजासे यह सब हाल कह सुनाया। यह समाचार सुनकर राजाको बड़ा / खेद हुआ और वह यह सोचकर अपने राज्यको निष्फल मानने लगा, .कि जब मेरे कुटुम्बके ही लोग दुःखी हैं, तब मेरा यह राज्य किस कामका है ? इसके बाद राजाने सब दिशाओंमें अपने परिवारके लोगोंको ढूँढ़नेके लिये अपने दूत रवाना किये ! कोई आदमी कहींसे वहां आता, तो राजा उससे अपने परिवारवालोंका पता-ठिकाना और . . हालचाल पूछते ; पर कहीं उनका पता नहीं लगा। - इधर जिस वर्ष शूरपाल अपने घरसे निकल भागा था, उसके दूसरे वर्ष वर्षा न होनेसे बड़ा भारी अकाल पड़ा। इससे बहुतसे लोग मर गये। धनाढय मनुष्य भी दुःखी हो गये। फिर ग़रीबोंका क्या कहना ? चोरोंका उर होमेके कारण लोगोंका आना-जाना भी मुश्किल हो / ऐसे विषम समयमें आदमी आदमीको खा जाता है,लोग अपने बालब को भी छोड़ देते हैं,उत्तम कुलके मनुष्य भी निंद्य और नीच कुलमें अपना बाल-कोंको बेंच देते हैं,तपस्वियोंको भी बड़ी मुश्किलसे भीख मिलती है, उस भीखको भी रङ्क-फकीर छीन लेते हैं और पुरुष अपनी स्त्रियोंको भी छोड़ देते हैं। ऐसे अकालकी बातही सुनकर लोगोंके प्राण थर्रा उठते हैं। . इस तरहका अकाल पड़नेसे महीपाल अपने परिवारके साथ काँचनपुरसे निकल भागा, और जगह-जगह अनेक प्रकारके प्रयास करते, ए. गाँवसे दूसरे गांवमें जाते हुए, शून्य घरोंमें निवास करते हुए, भू.' कुटुम्बोंके दुःखदायी वचनोंसे पीड़ा पाते हुए, परिपूर्ण भोजन भी न / करते हुए तथा अनेक नगर, ग्राम और पर्वत आदिका उल्लंघन कर क्रमश: वे उसी लगरमें आ पहुँचे। शीलमती, बहुत दिन बीत जानेपर . भी सिरका जूड़ा नहीं खोलती थी ओर अँगिया भी नहीं उतारती थी। उस फटी-पुरानी अंगियाको देखकर उसका ससुर उससे नयी अँगिया पहननेका कितना अनुग्रह करता था, तो भी उसने अगिया नहीं उतारी। इसलिये खेद प्राप्त कर, ससुर आदि सब लोगोंने कहा,--"यह कदाग्रही P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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