________________ षष्ठ प्रस्ताव। कहा।" यह सुन, उसके स्वामीने उससे बड़े भाग्रहके साथ पूछा। सब उसने आदिसे अन्त तक अपने मनोरथकी कथा उसे कह सुनायी। यह सुन, शूरपालने अपने मनमें विचार किया,-"ओह ! मेरे मां-बाप भो कैसे मूर्ख हैं ! ऐसी रन-समान स्त्रीकी इन लोगोंने ऐसी दुर्गति कर रखी है ! अहा, मेरी स्त्रीका मनोरथ कैसा प्रशंसनीय है ! सब स्त्रियों में यह स्त्री प्रशंसाके योग्य है। इसलिये अब मैं परदेश चलकर अपनी प्रियाके मनोरथको सिद्ध करनेका प्रयत्न करूँगा।" ऐसा विचार कर, शूरपालने अपनी स्त्रीसे परदेश जानेकी अनुमति माँगते हुए कहा,-“हे प्रिये ! तुम चिन्ता न करो। मैं परदेश जा, धर-उपमर्जन कर, शीघ्रही लौटू गा और तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा।" ऐफह, उसके माथेपर अपने हाथले जूड़ा बाँध तथा अँगिया पहिना काकहा,-"यह जूड़ा तुम मेरे आनेपर ही खोलना और यह अंगिया * मेरे आये बिना न. उतारना।" अपनी स्त्रीसे यह बात कह, हाथमें तुलवार लिये हुए शूरपोल घरसे बाहर निकला और परदेशकी ओर चल बड़ा। उसकी स्त्री थोड़ी देरके लिये हर्ष और विषादका अनुभव करने बाद अपने काममें लग गयो। प्रातः काल महीपाल आदि सब लोग, शूरपालको घरमें न देख, उसे चारों ओर खोजकर हार जानेपर उसकी श्रीसे पूछने लगे,–“हे भद्रे ! शूरपाल कहां गया ? क्या तुझे कुछ म है ?" उसने कहा,-"मुझे कुछ भी नहीं मालूम / " इसके बाद .aa कोई समाचार नहीं मिलनेके कारण उसके माता, पिता और प्रियआदि सब लोग परस्पर विचार करने लगे,-"क्या शूरपालको ने कोई दुःख पहुंचाया है, जिससे वह घरसे निकल भागा ?" पुत्राने कहा,-"पिता! हम लोगोंने तो उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ा ; क्योंकि प्रायः छोटा भाई सबको प्रिय होता है। इसके बाद फिर उन लोगोंने शूरपालकी स्त्रीसे पूछा, "भद्रे ! कहीं तुमसे तो उसकी कुछ लड़ाई नहीं हुई है ?" वह बोली,-"मेरे स्वामीके साथ मेरा कभी झगड़ा नहीं हुआ। हाँ, उन्होंने जाते समय अपने हाथसे मेरे बालोंका जूड़ा Gun atlasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust