________________ 368 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। -roommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm : अर्थात्—'पंक्तिभेद करनेवाला, वृथा पाक करनेवाला, अकारणही निद्राभंग करनेवाळा, धर्म-द्वेषी और कथाभंग करनेवाला-ये पाँचों चाण्डाल कहे जाते हैं।' - इसके बाद वे चारों बहुएँ फिर क्षेत्रकी ओर चलीं। मार्गमें तीनों बड़ी बहुओंने कहा,-"आज तो अपना मनोरथ पूरा हो गया। इस शीलमतीने भी जैसा सोचा था, वैसाही इसे भी खानेको मिला। प्रायः पुण्यवान् मनुष्योंको उनके इच्छानुसार फलकी प्राप्ति होही जाती है। इसीलिये बुद्धिमानोंको :चाहिये, कि तुच्छ मनोरथ न करें।" उनके साथ जाते-जाते शीलमतीने कहा,-"इस तरह बढ़िया-बढ़िया चीजें खानेका कोई फल थोड़े ही है ? भला-बुरा जैसा कुछ भोजन पेटमें पहुँचा, वह एकसाँ हुआ; परन्तु जिस दिन मेरा मनोरथ पूर्ण होगा, उस. 131 मेरी आत्मा कृतार्थ हो जायेगी।” यह कह, वह चुप हो रही। . इस प्रकार सदा इच्छानुसार भोजन मिलनेसे बहुओंको बड़ा आशय होने लगा। एक दिन तीनों बहुओंने अपनी साससे पूछा,-"माताजी आजकल आप हमें हमेशा पाहुनों की तरह उत्तम भोजन क्यों देती हैं ? और शीलमतीको सदा बुरा खाना क्यों देती हैं ? इसका कारण क्या है ?" इसपर उनकी सासने कहा,-"तुम लोगोंने किसी दिन एक जगह खड़ी होकर भोजनकी बात चलायी थी। वहीं तुम्हारे ससुर भी खड़े थे। उन्होंने तुम्हारी बातें सुनकर मुझे कह सुनायीं। उन्होंके अनुसार मैं तुम लोगोंको इस तरहका खाना दिया करती हूँ। मैं बात सुनते ही शोलमतीका चेहरा उदास हो गया। रातको एकान्त उसे इस तरह उदास मुंह किये देख, शूरपालने उससे पूछा, "हे प्रिये आज तुम ऐसी उद्विग्न क्यों दिखाई दे रही हो? क्या तुम्हें मा अधशाके साथ खिलाया है ? अथवा तुमने उनके साथ कुछ ढिठाई की . है, या तुमने माताका कुछ अनिष्ट कर डाला है ?" यह सुन, वह बोली,"हे स्वामी ! तुमसे तो मेरी कोई बात छिपी नहीं है ; पर ही मामलेमें कहनेकी तो कोई बात ही नहीं है, इसीलिये मैंने तुमसे कुछ भी नहीं P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust